वो बचपन की मासूमियत मानो अज़िय्यत हो चली है..
बेसुकुन और बदहवास सी तबीयत हो चली है...।।
कितने बदकिस्मत होते हैं न मासूम लोग भी। कोई भी अपना उन्हें पल में निराश कर जाता है। दिल तोड़ जाता है। और उनकी मासूमियत फ़िर भी ऐसे लोगों को मु'आफ़ करती रहती है।
खुद के लिए जीना, अपनी हसरतों को त्वज्जोह देना, न जाने कब सीखेंगे ये लोग।
वक्त के थपेड़े इन्हें कितना ही क्यों न सता लें, एक मासूम नन्हा सा दिल फ़िर भी सीने में रख कर घूमते हैं। कब इस मासूमियत का गला घोटना सीखेंगे?? कब इस मासूम धड़कते दिल को पत्थर बनाना सीखेंगे?
ख़ैर, जब तलक नहीं सीखेंगे, बदनसीब ही रहेंगे।।
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