लबों पर उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो कभी खफा नहीं होती
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां जब गुस्से में होती है तो रो देती है
अभी जिंदा है मेरी मां मुझे कुछ नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूं तो दुआ भी मेरे साथ चलती है
जब भी मेरी कश्ती सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
ए अंधेरे देख ले तेरा मुंह काला हो गया
मां ने आंखें खोली दे घर में उजाला हो गया
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिप्त हो कि मैं बच्चा हो जाऊं
लबों पर उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
एक मां है जो कभी खफा नहीं होती
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