ये कैसी कश्मकश है, ये कौनसी उलझनें है
जो सुलझ नहीं रही, बस साँसे घुट रही है
छूट रही है राहे, कारवाँ भी साथ नहीं
बस भागना चाहती हूँ, कहाँ वो भी पता नहीं,
जाना तो कहीं है नहीं, रुकना भी तो है नहीं
ज़ुल्म ख़ुद पे ये कैसा, खुद का ही न हो बस जैसा
ये खुदा तू तो समझ मुझे, इस जंजाल से रिहा दे
बोहोत एहसान होंगे तेरे मुझपे,बस यह एहसान कर दे।
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