फ़र्क पड़ता हैं लोगों पर अभी,जुबां पर दबी बात रहने दो
यूं न करो सरेआम मेरे इश्क़ को इसे गुमनाम रहने दो ।
ख्वाबों में होती रहेगी मुलाक़ात,मिलने की ज़िद ना करो
ये मसला रूहों का हैं,इसे जिस्म की आगोश में ना कैद करों।
काफ़ीला हैं साथ फिर भीं ये तन्हाई क्यू हैं..
अपनी बेबसी का इस तरह हर गली ना इज़हार करो।
कुछ मसले ख़ुदा की बारगाह में ही अच्छे लगते हैं
बे वजह उसे ख़ुद ही सुलझाने की कोशिश ना करो।
शब ए हिज्र से विसाल तक बस दिल में एक आह होगी
वफात का जब होगा वक्त, लबों पर मुस्कुराहट और हाथ में बस हाथ रहने दो।
कुछ तो जल जाते हैं कुछ दफ़न जमीं के अंदर..
पर मुझे तुम्हारे इश्क़ में ज़िंदा लाश बने रहने दो।
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