Rukhsana Pathan   (✍🏻Rukhsana Pathan)
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लिखना मेरा शौक है । लफ़्ज़ों को पिरोती हूं सोच के धागों में..
Joined 1 April 2020


लिखना मेरा शौक है । लफ़्ज़ों को पिरोती हूं सोच के धागों में..
Joined 1 April 2020
29 APR AT 12:07

फ़र्क पड़ता हैं लोगों पर अभी,जुबां पर दबी बात रहने दो
यूं न करो सरेआम मेरे इश्क़ को इसे गुमनाम रहने दो ।

ख्वाबों में होती रहेगी मुलाक़ात,मिलने की ज़िद ना करो
ये मसला रूहों का हैं,इसे जिस्म की आगोश में ना कैद करों।

काफ़ीला हैं साथ फिर भीं ये तन्हाई क्यू हैं..
अपनी बेबसी का इस तरह हर गली ना इज़हार करो।

कुछ मसले ख़ुदा की बारगाह में ही अच्छे लगते हैं
बे वजह उसे ख़ुद ही सुलझाने की कोशिश ना करो।

शब ए हिज्र से विसाल तक बस दिल में एक आह होगी
वफात का जब होगा वक्त, लबों पर मुस्कुराहट और हाथ में बस हाथ रहने दो।

कुछ तो जल जाते हैं कुछ दफ़न जमीं के अंदर..
पर मुझे तुम्हारे इश्क़ में ज़िंदा लाश बने रहने दो।

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25 APR AT 23:27

पुरानी यादों का मौसम आज फिर बरस पड़ा मानो मरुस्थल में तपती हुई रेत पर उमड़ पड़ा हों बादल जैसे...!

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25 APR AT 23:17

बीती हुई बातें, वो बेनाम मुलाकातें
भीगी हुई पलकें, लबों पर शिकायतें
तरसती बाहें, बरसती निगाहें
जुल्फों से लड़कर उलझती हवाएं
न जानें कितनी याद आती हैं
निशानियां मुहब्बत की
भूलना अच्छा होता हैं...

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24 APR AT 16:15

सिमटे हुए जज़्बात आज भी कैद हैं गुलदानों में
फिजाओं ने भी उस पर क्या सितम ढाया हैं ।

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24 APR AT 16:05


गर रूह से होते हुऐ जिस्म पर ठहर जाऊं
तो कुछ मत कहना..
आगोश में तेरी मैं बहक जाऊं
तो कुछ मत कहना..

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21 MAR AT 11:57

एक हरवलेलं पत्र आज दाराशी आलं
वाचता मन गलबलून गेलं..
कुणीतरी केलं होत मोकळं त्यात मन
पण बरच काही मध्ये धूसर होतं.
तो कदाचित अश्रूंचा आवेग असावा
लिहिलेलं काही अलगद मिटावा
मिटलेल्या शब्दांच्या खुणा
मनचक्षूनी पाहता त्या टीपाव्या.
पत्र संपूर्ण वाचून झाले.
पात्र विरहात जिवंत झाले
पण पत्त्याचा कुठेच ना ठिकाणा
पाहून मग मन सुन्न झाले.
थरथरत्या हाताने ते सुलट केलं
दिसलं त्यावर स्वतःच नाव कोरलेलं
कित्येक वर्षांपूर्वी लिहलेले एक पत्र
आवेगात त्याच नाव टाकायचं राहून गेलं...

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21 MAR AT 11:33

तेरे बगैर जीना सीख गई हूं
ऐसा नहीं की तुझ को भूल गई हूं
कैसे करू इज़हार...
ये मेरी बेपनाह मोहब्बत हैं
आखों में आंसू लेकर
मुस्कुराना सीख गई हूं...!

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21 MAR AT 11:23

सहज कधीतरी काही सुचून जाते
कधी पणती मनातील विझून जाते
उगाचच निघती आठवनीचे धूर
हुंदका हवेत विरून जाते..
तगमग जीवाची तुला ही सोसवेना
आहे मध्ये गुंतलेला पाश जीवघेणा
तुझ्या मनीचा रिकामा कोपरा
गीत विरहाचे गाऊन जाते..
लकेर हळूवार पोचेल मजपाशी
भासात आठवेल ती घट्ट मिठी
चालेल त्यात मग आपला मुक संवाद
बाग प्रितीची जणू बहरून जाते..

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4 MAR AT 23:09

ये तोहफ़ा कुबूल हैं
कल किसे पता
दिल की दहलीज पर
फिर कोई ना मुराद
अपनी मुराद का
वास्ता देकर जायें..

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4 MAR AT 14:19

ज़रूरी हैं विरोध करना
जब कोई आपके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाये
जब कोई बे मतलब करता है शोषण
शारीरिक और मानसिक रूप से
चाहें वो स्त्री हो या पुरुष
स्वाभिमान सब को हैं
परिवार या सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर
ना जानें कितनी ही मुस्कुराहटें
सिर्फ़ खिली हुई है लबों पर
सब के भीतर उमड़ रहा हैं एक तूफ़ान
कश्मकश की धारा को चीरते हुएं
या अपनी ही बेबसी पर आंसू बहाते
ज़रूरी हैं विरोध करना
चाहें खुद के ही विरुद्ध हो...

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