हर दिन हँसे, हर पल जिये.. हर शाम खिले, हर सुबह उड़े .. हर आज रहे, वो खूब जिये.. वो खूब बढ़े, सदराह चले.. आशीष बने दुनिया के लिए.. हमराही रहे बस मेरे लिए.. आज़ाद रहे, वो साथ रहे.. मेरा, मुझसे वो पास रहे.. ........
फख़त आँखे नम पड़ जाती हैं उन नाज़ुक लम्हों में कि जब तेरे जुर्म को कागज़ में पिरोना होता है, और जब मेहरबानी होती है मुझ पर मेरे ख़ुदा की तो कमबख्त दिल बेहयाई से तेरे ख़ातिर दुआ करता है, जब भी तेरा जिक्र हुआ है कभी भी मेरे महफ़िल में तो मेरे दिल और दिमाग का मुकदमा चला है..!