चले तो गये हो तुम,
इस दुनिया को छोड़कर,
अपनों से मुँह मोड़कर,
मौत से नाता जोड़कर।
मगर क्यों नही सोचा था तुमने,
के वो कंधा इतना भी मज़बूत तो न होगा,
जो उठा पायेगें उस बेटे को कांधे पर,
जो कभी कांधे पर बैठाकर घुमाया करते थे।
बेशक तुम हालातों से लड़े होगे,
ज़िन्दगी की जंग में डट कर खड़े होगे,
जब दुनिया की भीड़ में खुद को तन्हा पाये होगे,
तो इसी भीड़ के किसी कोने पर खड़े होगे।
हारे नही तुम इस दुनिया से,
तुम खुद से हार गये हो,
मरे नही हो इस दुनिया के लिए तुम,
अपनों को मार गये हो।
-