अभी काजल की दूरी सुरख गालो तक नहीं आई जुबान दातौं तलक है और ज़हर प्यालौं तक नहीं आया । जंग ऊ जिदल है किस से , रुका था देखने तलब , के फिर से चला , सांस नहीं आई।
रफता रफता एक आतिश हिफाज़त में सो गई , जाग गए कितने समंदर पानी की बाहो में , ओर मिल गए कुछ साहिल एक हादसे की तरह, ना जाने कितने खो गए तेरे शहर की राहो में।