अब बेवजह ही तूझे हर किसी पर भड़कता देखता हूं, मेरे बिना मजबूर सा तड़पता देखता हूं , देखता हूं भटकता लाचार तुझे, अब नहीं है नसीब मेरा प्यार तुझे, अगर तू समझ जाती वक्त पर, तो आज इतनी बेबसी न होती, तेरे आँखो में आँसूं और,होंठो पर झूठी हसी ना होती मेरे पहले फैसले पर अगर,मेरा साथ दे देती ना तू तो मेरा दूसरा फैसला खुदकुशी ना होती ...
अब फिर निखरने का भी कोई शौक नहीं रहा , दुबारा बिखरने का भी कोई शौक नहीं रहा, पर न चाहता हुआ भी तेरी बातों में आ जाता हूं, कितना बेशर्म हूं तुझसे मिलने रातों में आ जाता हूं, (2) पर तू भी तो मेरे इतने क़रीब आकर बोलती थी , अपने आँखों में आँशु लाकर बोलती थी , ज़िंदगी भर साथ रहेगी कहती थी ना तू , और तो और मेरी कसम खाकर बोलती थी,
इतना प्यार की तेरे साथ मुझे भाग जाना भी सही लगता था, सभी दुश्मन लगते बस तू अपना सा ही लगता था, अपने सारे दर्दों तो अटका कर साखों पर रखा तेरी सारी ही बातों को सर आंखों पर रखा ,
दीवाना जिसे तेरे प्यार के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता था , में इतना पागल था जिसे ज़रा भी सब्र नहीं आता था, आता था तो सुकून जब तेरी बाहों में होता था, अनसुनी सिसकियां की में आहों में होता था , तुझे क्या पता में कैसे मिलने आता था तुझसे, तुझे क्या पता कितनी परेशानी की राहों में होता था, पर सभी अरचनो को पार करता था में अरे पागल तुझसे बहुत प्यार करता था में
फिजाएं हसीन थी मोहब्ब्त का ज़माना था, कुर्बत में मेरा भी बड़ा प्यारा सा फसाना था, एक सोच खाए जा रही हैं आज भी मुझको में कैसे किसी के प्यार में इतना दीवाना था (2)
फिजाएं हसीन थी मोहब्ब्त का ज़माना था, कुर्बत में मेरा भी बड़ा प्यारा सा फसाना था, एक सोच खाए जा रही हैं आज भी मुझको में कैसे किसी के प्यार में इतना दीवाना था (2)