मेरी आखिरी कलम
मैं अपनी आखिरी कलम से कुछ ऐसा लिखना चाहता,
जो ज़िन्दगी की वास्तिकता को दिखलाए,
जो अन्दर ही अन्दर गहरा सन्नाटा उत्पन्न करजाए,
जो किसी व्यक्ति को खुद से ही मिलाए।
शहर के शोर से दूर, रास्तों की तन्हाइयों में ले जाए,
पहाड़ों की ऊंचाईयों का एहसास कराए,
समुंद्र की गहराइयों में डुबाए।
मेरी आखिरी कलम में बात कुछ ऐसी हो,
कि शाम भी रात जैसी हो,
मौत भी ज़िन्दगी की सौगात जैसी हो,
ठोस दिल से लिखते शायर के जज़्बात जैसी हो।
कलम चाहे पहली हो या आखिरी,
लिखावट तो एक सार ही होगी,
बस आखिरी में खुशबू अनुभव और एहसास की होगी,
... एक नए सिरे के आगाज़ की होगी।
रोते-रुलाते, हंसते-मुस्कुराते, बात किसी खास की होगी,
मेरी आखिरी कलम में कुछ बात ऐसी होगी।
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