Rishabh Sharma   (Rishabh)
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Joined 15 November 2017


Joined 15 November 2017
4 FEB AT 17:52

Loneliness in the crowd,
Shouts too loud.

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25 MAY 2023 AT 17:54

मैंने मन्नतों में उसकी मौत मांग रखी है
तुझसे ऐ खुदा मैंने बहुत मांग रखी है

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10 JUN 2021 AT 10:29

लोग जोड़ लेते हैं न जाने कैसे रिश्ता दुनिया से,
हमारा तो हमसे ही तअल्लुक़ नहीं हो पाता।

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3 JUN 2021 AT 22:32

वो इक मुस्कान देखे एक अरसा बीत गया,
वही मुस्कान जिसे देख रात चर्चा बीत गया।

वो हवाओं में तेरी महक का घुल जाना,
जैसे चांद आए और आफताब बीत गया।

लिबास से मेरे खुशबू नहीं जाती है तेरी,
वो लिबास धोए एक ज़माना बीत गया।

किस खुदा की इबादत करूँ मुझे बता,
वो कहता है हमारे साथ का वक्त बीत गया।

मैं क्यूं मानूं तू नहीं मेरे साथ अब जानाँ,
तेरी तस्वीर के सहारे हर मौसम बीत गया।

कुछ नहीं बीता है तो तेरी यादों का कारवाँ,
यहाँ तो हर इक दिन तेरे नाम पे बीत गया।

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6 MAY 2021 AT 22:49

यहाँ नक़ाब ढके चेहरे दिन के उजाले में नहीं दिखते
और तुम सुरमई रात में मेरे अश्कों को पहचान लेती हो

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6 APR 2021 AT 23:46

इससे क्या फर्क है कि तलवार किसकी है
सर रखा है तो कलम हो ही जायेगा

क्या अपना, क्या पराया इस जहां में
कत्ल तो बिन हथियार के भी हो ही जायेगा

न जियो भले खुद के वास्ते एक पल भी तुम
बच्चा बड़ा होगा तो जुदा हो ही जायेगा

तबस्सुम बिखरने दो अपने चेहरे से
खुदा को पता तेरा दर्द हो ही जायेगा

उसका नहीं आना चुभता तो है आज भी
उसके आने से ज़ख़्म हरा हो ही जायेगा

ज़माना कब तक याद रखेगा किसी को
हर शख़्स यहाँ मिट्टी हो ही जायेगा

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31 MAR 2021 AT 8:40

उस गली का रुख नहीं करता मैं जिसमें तेरा आना जाना था,

तेरी खुशबुएं मेरे कदमों के निशाँ मिटा जाती हैं।

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22 DEC 2020 AT 22:58

तेरा मेरे दर पे आना क्या हुआ,
मेरा घर आँगन पावन हो गया।
तुझे देख आँखें चमक गईं,
तेरे कदमों से मेरा जहाँ रोशन हो गया।

तुझे जो पहली दफ़ा हाथ लगाया,
जन्मों का पाप धुल सा गया।
तेरा चेहरा देखा जब उस रात,
अंधी आँखों को नूर आ गया।


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13 NOV 2020 AT 21:25

ज़रा काजल तो चढ़ा तू आँखों पे अपने,
दुनिया को पता चले, श्रृंगार किसे कहते हैं।

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3 JUN 2020 AT 20:00

तू पावन गंगा घाट सी,
मैं प्रलय हूँ तेरे नाम का।

तू धूप सुगंधित शिवालय की,
मैं शंखनाद महायुद्ध का।

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