Rishabh SAGAR   (" रिषभ सागर ")
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Joined 24 July 2023


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5 MAY AT 0:21

नन्हे मासूम बच्चों की मुस्कुराहट में हुं में,
बुजुर्गोंको की सहारे की लाठी में भी में ही हुं,
स्त्रियों के मान-सम्मान, गौरव , मर्यादा मे हूं में
आदमी के फ़र्ज पीछे ता-उम्र,दौड़ मे भी में ही हुं,
क्यूँ व्यर्थ ढूढंता , मुजको यहाँ - वहाँ,
जब मौजूद में तेरे भीतर ही हुं,
जब मौजूद में तेरे भीतर ही हुं,

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3 MAY AT 22:38

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3 MAY AT 22:17

ना बदला है नहीं बदलेगा, यही रीत चलने वाली है,
ज़रा संभालकर,

कहेंगें वोट नहीं आशीर्वाद लेने आए है,
ज़रा संभालकर,

जो आज सेवक और सेवा की बाते करते है,
कल जीत जाने के बाद, रंग ना बदल दे,
ज़रा संभालकर,

जो आज हाथ जोड़कर खड़े है,
कल तुम्हरे जुड़े हाथ उन्हें ना दिखाए दे,
ज़रा संभालकर,

7th मई को EVM का बटन ज़रूर दबाना, लेकिन
ज़रा संभालकर, ज़रा संभालकर....

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2 MAY AT 23:52

दोस्तों के संग शाम ना होती,
पारिवारिक रिश्तों में जान ना होती,
महफ़िल में शेरों-शायरी-गज़ल ना होती,
राम-सेतु जैसी प्रेम की निशानी ना होती,
गुजरे हुए पलों की कोई कहानी ना होती,
मिलन और जूदाई की रित-रस्म की तारीख ना होती,
मौत के बाद हस्ति की पहचान ना होती....

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30 APR AT 0:52

आया है चुनाव लगा गली गली जुमलों का नारा है,
हाथ जोड़कर गॅरंटी देंगे हम ही तुम्हारा सहारा है,
ड़राकर कहेंगे अगर हम नहीं तो तुम को इस देश में ख़तरा है,
मूल मुद्दों को छोड़कर मतदाताओं को लुभानें धर्म का लेगें यह आसरा है

ज़रा संभालकर, ज़रा संभालकर, इस जुमलेबाज़ी से बचकर,

शिक्षा, आरोग्य और रोजगार के लिए 7th मई को योग्य बटन दबाना कर्तव्य हमारा है, कर्तव्य हमारा है...

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27 APR AT 0:06


तबाह होने के लिए काफ़ी एक इशारा है,
तबाह होने के लिए काफ़ी एक इशारा है,
तबाह होने के लिए काफ़ी एक इशारा है,

मोहब्बत का मज़ा चखनें के लिए यह भी गवारा है।



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25 MAR AT 2:22

मिला लो, जा नी वा ली पी ना रा ,
के संग कोई सा भी रंग,

" तिरंगें " के रंग सा ,
नहीं इस जहां में कोई दूजा रंग...

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25 MAR AT 1:30

देर से ही सही आऊंगा ज़रूर
किया है जो वादा वो निभाऊंगा ज़रूर,

अपने चहेरे को थोड़ा सा कोरा कोरा रखना,
मेरे हाथों सें वहां हल्का हल्का ग़ुलाल लगाऊंगा ज़रूर...

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21 MAR AT 8:10

હૃદયની લાગણીઓ ને,
કલમ અને શાહી ના સથવારે ,
કાગળ પર શબ્દો ના સૌંદર્યથી શણગારી,
એકબીજા ના મન, સુધી પોહચવાની,
અભિવ્યક્તિ એટલે " કવિતા "...

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18 MAR AT 0:03

बड़ी मुद्दतों के बाद मेरे यार का ख़त आया है,
लगता है अब फ़िर से प्यार करनें का वक्त आया है,
कागज़ पर शब्दो को लहजे से
सजाने की रीत यह पूरानी है " सागर "
दिल के ज़ख़्मो के नाम,
बंद लिफ़ाफ़े में जज़्बातों का मरहम आया है।



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