एक कंकाल दूसरे कंकाल से ....
जिंदा इंसान कहता है कि कब्र में सुकून है।
चलो जल्दी-जल्दी हाथ पैर चलाओ इससे पहले
कि इंसान हमारे हक का सुकून ढूँढ ले हमें सभी कब्रों को खोदना है
पता नहीं सुकून किस कब्र में दफ़न है।
चलो-चलो जल्दी करो। अपने और साथियों को भी बुला लो।
कंकाल धीरे-धीरे गाते हुए .... ज़रा सामने तो आना छलिए, छिप छिप छलने में क्या राज़ है। ओओओओ सुकून कहाँ छिपा है तू, कोई इशारा तो दे, कोई इशारा तो दे .....-
https://www.instagram.com/dil_k_ahs... read more
जिन्हें किसी की खुशियों को जला कर राख रास आ जाए
उनसे हसद क्या और क्या गिला,
ऐ नादान दिल! तू ही बता कोई भी शिकवा कैसे किया जाए?
दिल के एहसास। रेखा खन्ना
-
ख्वाहिश-ए-दिल को तुम आँखो में पढ़ नहीं पाए
अनकही चाहत में इस कदर डूबे कि संभल नहीं पाए।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-
Me and Praachi totally agree that Anuj ji was a squirrel in his previous birth but his taste was not limited to moongfali and nuts.
🤗🤗🤫🤫🤫🤫😜😜
Anuj ji ...-
बादलों के पार परिंदा उड़ ना सका
भीगे पंख लिए ज़मीं पर आ गिरा
एक भूखी बिल्ली थी भोजन की तलाश में
देख निढाल परिंदा फटाफट मुँह में दबोच लिया।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-
जिस दरख़्त के नीचे बैठ हमनें बहारें देखी थी
वहाँ अब पतझड़ के पीले पत्तों का बसेरा है
पीलापन पसरा है चारों, बहारों के इंतज़ार में
जिस रोज़ तुम आ बैठोगी मेरे करीब
उस रोज़ नयी कोंपलें दस्तक देंगी रूठी हुई शाखों पर
गुलमोहर फिर हंँस पड़ेगा अपना लाल रंग देख कर
जिसे पतझड़ के पीले पत्ते तंज देते हैं
अपना शोख खिलता हुआ पीला रंग दिखा कर
जिस रोज़ तुम लौट आओगी उस रोज़ मेरे भीतर
ठहरा हुआ पतझड़ भी विदा लेगा और
मुझे गुलमोहर भेंट देगा।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-
हर रोज़ सवाल पूछती खुद से
आईने में देख कर
हर रोज़ आईना जवाब देता
तुम खूबसूरत हो
वो तलाशती खुद को
खुद की आंँखों में झांँक कर
आईना रोज़ कहता
आँखों से एक बार
अपनी रूह को देखो
कितनी सुन्दर है
शक्ल तो हर रोज़ बदलती है
पर रूह, रूह नहीं बदलती
वो हर हाल में खुद को ढाल लेती है
पर अंदरूनी खूबसूरती अपनी
नहीं बदलती है।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना-
कितनी आसानी से
दीवारों ने छिपा ली
अलगाव की सब बातें
अपनी दरारों में
ताकि नींव हिलने से बच जाए
पर दीवारें घर की जुदा हो गयी
बंटवारे की चपेट में आ कर।
कितनी आसानी से भुला दी गई
नींव गहरे रिश्तों की
खून कहाँ साथ निभाता है
ताउम्र के लिए
वो भेंट चढ़ा देता है रिश्तों की
जायदाद के लालच में।
कितना आसान है ना सब-कुछ भूला देना
पर दीवारें नहीं भूलती कि कभी वो
एक हंसते-खेलते घर का हिस्सा थी
और अब मात्र खंडहर।
दिल के एहसास। रेखा खन्ना
-
नयी उम्मीद थपकी देकर उठाती है
रात, उम्मीद पूरी ना होने की कहानी सुनाती है।
नींद, आंँखों को सपनों के जंगल में भटकाती है..!!
दिल के एहसास। रेखा खन्ना
-