Ravindra Gupta   (Instagram/i_m_guptajiii)
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Started Journey Again
Joined 13 March 2019


Started Journey Again
Joined 13 March 2019
2 APR 2021 AT 17:58

क्या गलत ? क्या सही?

लड़की का अनजान से बात करना गलत है।
तो क्या अनजान के साथ विदा होना जाना सही है?

Read Full Caption Full Poem👇👇👇

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4 APR 2021 AT 17:57

सारी बातों को भुला सकता हूँ,
लेकिन, रहने दो...
मैं भी तुझे छोड़ के जा सकता हूँ,
लेकिन, रहने द...
तू हर मोड़ पे कह देती है अलविदा मुझको,
फैसला मैं भी सुना सकता हूँ,
लेकिन, रहने दो...
तूने जो बाते कही है ना, दिल को दुखाने वाली,
सुन, मैं उन सब पे मुस्कुरा सकता हूँ,
लेकिन रहने दो...
और हाँ,
शर्म आ जायेगी तुझे खुद पर,
तेरे वादे मैं तुझे याद दिला सकता हूँ,
लेकिन, रहने दो...

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26 MAR 2021 AT 17:39

Tadapna kya hota hae ye to bss vhi jan skta hae
Jo kisi ko dekhne ,sunne ,or gale lgane ki
ummid pr jinda ho.

kyunkii saccha pyar har koi nhi kr skta or
jo krta he uska tadpna nischit hae.

#one sided hi accept karke log arrange marriage kar rahe
#bki sab toh moh maya hae

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26 MAR 2021 AT 17:39

Tadapna kya hota hae ye to bss vhi jan skta hae
Jo kisi ko dekhne ,sunne ,or gale lgane ki
ummid pr jinda ho.

kyunkii saccha pyar har koi nhi kr skta or
jo krta he uska tadpna nischit hae.

#one sided hi accept karke log arrange marriage kar rahe
#bki sab toh moh maya hae

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21 MAR 2021 AT 18:38

Story of a woman, a cheating husband, and hypocrite Indian society


Read Caption for whole story...

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20 MAR 2021 AT 17:51

#NIRBHAYA

तू है जहाँ भी आज देख के मुस्कुरा तो रही होगी ,
फांसी उन चार की आज हर ज़ालिम को डरा तो रही होगी,
और क्या लगाएं अंदाज़ उस माँ की खुशी का,
दिए बरसों बाद आज जला तो वो भी रही होगी।

#1yr of justice
#16th dec 2012 to 20th march 2020

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12 MAR 2021 AT 17:50

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
लगी है महफ़िल पर तन्हा आदमी...
अपने सपनों का बोझ ढोता हुआ
है जाने किस खुमार में जीता आदमी

खुद ही खुद से रखता है राबता
देखो बना स्वार्थ की मूरत आदमी
अपने इर्द गिर्द बुने अपने जैसे लोग
हर पल धोखा खाए चालाक आदमी

पैसों का देखो खड़ा किया महल
फिर भी है क्यों बेकरार आदमी
अपने ही घमंड में है चूर इस कदर
कि आदमी को नही पहचानता आदमी

कमाना चाहता है दिन रात मर मर कर
क्यों चाहता है फिर इतवार आदमी
एक दूजे का दर्द तक ना समझे जो
जाने कैसे हुआ इतना बेकार आदमी

रुतबा कमाया पर तमीज़ ना सीखा
पढ लिख कर भी है गंवार आदमी

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8 MAR 2021 AT 18:12

हां वो एक औरत ही तो है...

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5 MAR 2021 AT 18:44

क्यों नही है हक़ मुझे, अपने फैसले खुद करने का...

Read this poem in Caption...👇👇👇

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4 MAR 2021 AT 18:16

एक दूजे के सहारे ही, जीवन को चलाना है
दीपक और बाती का, तो साथ पुराना है...
जो अँधेरा घना छाए, तो ज्योत जलानी है...
ज़िन्दगी और कुछ भी नही, तेरी मेरी कहानी है...

मझदार में फंस कर भी, कश्ती को चलाना है,
हँसते हुए हर पल, गम को छुपाना है...
माँझी सा है जीवन ये, यही बात बतानी है,
ज़िन्दगी और कुछ भी नही, तेरी मेरी कहानी है...

घोंसले से उड़ा पंछी, ढूँढता दाना दाना है
साँझ ढले तब ही, घर लौट के आना है
जो भटक गए उनको, नयी राह दिखानी है
ज़िन्दगी और कुछ भी नही, तेरी मेरी कहानी है...

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