क़तल करे तू बड़े प्यार से ना तीर ना कोई तलवार से आँखों या नाज़रो की धार से ओझल करे तेरी ये बोली अफीम मिला मुस्काना में तेरी बेरंग को भी रंगीना तू कर दे हर लम्हे को हसीना तू कर दे कायल तेरी अदाओ का में आशिक़ बना इन निगहाओं का में
बड़ा ही रंगीन रहा ये नज़ारा कुछ रंगो ने रंगो का साथ छोड़ दिया गैरो की बात करते हो तुम यहाँ तो अपनों ने भी अपनों का साथ छोड़ दिया हम बदल कर देखते भी क्या हमने तो खुद को ही छोड़ दिया
भीड़ खड़ी हे देखने को देहेन कह कर मुझको रावण मंज़र ये मेरे अंत का हर चौक हर चौराहे पर पुतला स्वरुप ये मेरा तुमने रावण जला तो दिआ , परन्तु मन में जो ये पाप हे बुद्धि में जो ये अन्धकार हे रावण स्वरुप भीतर तेरे बसा तेरा ही तो काल हे उसको कैसे जलाएगा उसको कैसे मिटाएगा
खुद को झंझोड़ता इंसान , सीने में दबाये फिरता जस्बात बढ़ाता रहता अपना मानसिक तनाव और चेहरे पर लिए झूठी मुस्कान तनाव ज़िंदगी में हो तो इंसान तोड़ दे तनाव रिश्ते में हो तो रिस्ता तोड़ दे
तू जितना भी बटोर ले , चाहे कर्मो को टटोल ले तेरा पल पल का हिसाब ना टाल सका है कोई काल एक दिन सब नष्ट हो जायेगा महादेव के तांडव में
पैदा होते ही तेरे पीछे पड़ जाता है काल जरिये जुड़ते जायेगे नजदीक आजायेगा काल ये ही तो जीवन मरण का चक्र है फिर किस बात का अभिमान एक दिन सब नष्ट हो जायेगा महादेव के तांडव में