बस यूं ही अटका अटका सा रह जाता है। जाला टूट भी जाय तो दूसरा बना लेता है। ये भी जानता है कि ये उसी के बनाये हैं। फिर भी आंखरी सांस तक इसके चंगुल से छूट नहीं पाता।।
एक एक लम्हे में हंसते और हंसाते हैं। मिलें हैं ये लम्हें खुदा की इनायत ही तो है। फिर क्यों हम इन्हें रोने और रुलाने में बिताते हैं। गुजरे हुए लम्हें वापस नहीं आते हैं। बस याद रह जाती है और सपने से बन जाते हैं।।
ऐसा लगता है मेरे हमनशीं घर से बहार निकले हैं। हवा की मीठी खुशबू कह रही है उनके लबों पे हमारे नाम से यादों के फूल बिखरे हैं। क्यों ये बहारें हमसे ये कहना चाह रही हैं कि मेरे महजबीं हमारी ही तलाश में कहीं निकलें हैं।।
हवा चलने लगी। पेड़ों की छाया में बैठी मैं ठिठुरने लगी। स्वेटर ढूढने लगी। हवा के झोकों में स्वेटर दूर उड़ती दिखी। उसे पकड़ने की कोशिश में, मैं गिर पड़ी। चोट काफी लगी, आंसु आने लगे। तभी एक अजनबी ने आकर मेरा हाल पूछा। मुझे घर तक छोड़ा। मेरे जख्मों में मरहम लगाने के बाद जब वो जाने लगा। कुछ ऐसा लगा कि एक नया ज़ख्म बनने लगा। मेरे जीवन की एक नई कहानी कोइ लिखने लगा।। धूप ढलने लगी, कहानी बनने लगी।।
Writing sprint: Day 94 Write a poem where all lines start with letter A
Affluence gives you all luxuries, And poverty gives all worries, Amazed and bewildered I reach to the Lord, Asking “why is there such a difference in your kingdom, O God”, Answers the Lord, “for this, we are all to be held responsible.”