Rajesh Kumar Dwivedi   (Rrajesh Dwivedi "तृषित")
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Mathematics teacher
Joined 2 December 2019


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15 FEB AT 9:52

इश्क में भीगा इजहार ए मोहब्बत,
खत में हो या फिर महफिल में
क्या ही फर्क पड़ता है।

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14 FEB AT 12:50

महफिल में तुमको देखा ,
महफिल में पर नहीं थी।
बस जिक्र थी तुम्हारी ,
यादों में तुम बसी थी ।
ताजे हुए हर लम्हें जो,
हमनें थे संग बिताए ।
फैली थी तेरी खुशबू,
सांसों में तुम घुली थी।
वो दौड़ के आ मिलना,
बाहों में आकर खिलना।
प्यासे पपीहे जैसी ,
वो स्वाति बूंद चखना।
फूलों सी तुम खिली थी,
सांसों में तुम घुली थी।
बस जिक्र थी तुम्हारी,
यादों में तुम बसी थी।

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31 JAN AT 22:00

कुछ उमड़ते आंसू बह न सके,
किसी से दर्द अपना कह न सके l
मौसम ने घोली निगाहों में शराब,
बाहों में आये बिना रह न सके l
नजरों ने मुझे बीमार कर दिया ,
पर हकीकत बयां कर न सके l

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28 JAN AT 12:08

तुम्हारे प्रीति दरिया में तेरे संग बह नहीं सकता ।
तुझे महसूस करता हूँ पर कुछ कह नहीं सकता।
  हवाएं तुमसे होकर आ रही मदहोश करतीं हैं,
तेरे बिन रो नहीं सकता तेरे बिन हंस नहीं सकता ।

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27 JAN AT 21:08

हे सखी
खत रोज लिखता हूं ,खत रोज पढ़ता हूं।
मगर मेरी बेबसी देखो,तुझे न भेज पाता हूं।

रह रह पास आती हो, रह रह दूर जाती हो ।
मगर मेरी बेबसी देखो, तुझे न रोक पाता हूं।

तुम्हारी याद आती है, आ मुझको तड़पती है।
मगर मेरी बेबसी देखो, तुझे न भूल पाता हूं।

मेरे दिल में ही रहती हो, होकर अविरल बहती हो।
पर मेरी बेबसी देखो,कि तुझे समझा न पाता हूं।

मेरे ख्वाबों में आती हो ,मेरा सुख चैन चुराती हो।
मगर मेरी बेबसी देखो, न तुमसे बोल पाता हूं।

तुम्हारा सखा

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26 JAN AT 10:36

कुछ प्यारे थे बहुत अब कसूर हो गये
वक्त ने ली करवट कि  नासूर हो गये
अपनी उंगलियों उठाते रहे हमीं पर
कालिख मली ऐसी हम मशहूर हो गये।

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19 JAN AT 21:19

आओ! तस्वीर ए इश्क बनाते हैं,
आंखों ही आंखों में बतियाते हैं,
मोहब्बत के इन हंसीन पलों से,
आओ! कुछ लम्हें चुरा लाते हैं।

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19 JAN AT 19:10

दिल का अरमान बहुत होता है
दिल मेहरबान बहुत होता है
दिल किसी से लग जाए तो
दिल परेशान बहुत होता है

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9 JAN AT 6:33

आंखों से आंखें चार कर
मोहब्बत का आधार रख
बेरहम है यह राह माना
इश्क है तो इजहार कर

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8 JAN AT 14:00

जो ठीक लगे तुम करना
कर्तव्य मार्ग पर चलना
टिप्पणियों से मत डरना
लोगों का काम है कहना

कहने वाले तो कहेंगे ही
जलने वाले तो जलेंगे ही

मुंह रोक नहीं पाया कोई
फिर बातों से क्या डरना ?
लोगों का काम है कहना।

कानाफूसी हो तो होती रहे
उंगलियां उठे तो उठती रहे

खुद से डरो चलते जाओ
धारा बन अविरल बहना
लोगों का काम है कहना

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