Rajat Kumar   (रजत कुमार 'राही')
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Joined 2 April 2017


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Joined 2 April 2017
20 APR 2019 AT 17:29

प्रेम पर
लिखी गईं
सब कविताएं
शब्दों का आडम्बर लगता है,

तुम्हारा हँसना
प्रकृति की
सबसे ख़ूबसूरत प्रेम कविता है!

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22 MAR 2019 AT 16:20

भूख हमारे समय
का सबसे बड़ा अभिशाप है।

ये आती है
अपने नुकीले दाँतो के साथ
और खा जाती है
एक भरा-पूरा बचपन!

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9 OCT 2020 AT 22:14

अच्छा मैंने मान लिया है
मैं झूठा हूँ तू सच्चा है

प्यार मुहब्ब्त इश्क़ वफ़ाएँ
इन बातों में क्या रक्खा है

मैं तेरे ख़्वाबों में आऊँ
क्या ये मुमकिन हो सकता है

ख़ू के अश्क़ बहाकर ऐ दिल
आख़िर तूने क्या पाया है

अपनी किस्मत अपने हाथों
जो चाहो वो मिल सकता है

उसके जैसा हो जाएगा
ख़ुशफ़हमी है तू बच्चा है

चार ग़ज़ल कहकर हर कोई
ख़ुद को अब शाइर कहता है

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26 SEP 2020 AT 10:36

मैं यायावर बंजारा
तुमको क्या दे पाउँगा
गीत गाता हूँ,
बस गीत गाऊँगा

फिर भी मुझ पर तुम्हारा
सर्वाधिकार है प्रिय
मेरे गीतों का भाव
तुम्हारा प्यार है प्रिय

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2 AUG 2020 AT 11:44

ज़िन्दगी को जीतने के लिए
लड़ना पड़ता है हर हाल में
अड़ना पड़ता है हर परिस्थिति के आगे
भिड़ना पड़ता है चुनौतियों से

ये जो ज़िन्दगी है न
बाहें फैलाये खड़ी है आपके सामने

तोड़ डालिए अवसाद के पिंजरे को
यक़ीन मानिए
अंतर्मन के किसी कोने में
छिपा है आशा का मोती
उसे ढूंढ़ निकालिये
और अड़ जाइए मौत से
इससे पहले कि मौत आपको जीत ले।

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20 JUL 2020 AT 20:33

तुम्हारा लौट आना
किन्हीं भी परिस्थितियों में स्वीकार नहीं है मुझे,
मेरे पारिजात के फूल!

क्योंकि तुम्हें, जाना ही नहीं चाहिए था।

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17 JUL 2020 AT 20:27

डर लगता है
जब तुम्हारी याद आती है,
डर लगता है
जब भूख लगती है

डर लगता है
जब फोन में सेव दो सौ से भी ज़्यादा
कॉन्टेक्ट नम्बर काम नहीं आते
जो हमेशा कहते हैं- 'कोई परेशानी हो तो फोन करना'

डर लगता है
जब दिन का अर्थ
सूरज का चढ़ना-उतरना भर रह जाता है
और रात चली आती है, मौत-सी मुस्कान लिए

डर लगता है
जब माँ टकटकी लगाए
देखती है मुझे और पापा
माँ को यूँ देखता देख मुस्करा देते हैं

यूँ तो मैं मौत से भी डरता नहीं
पर कभी-कभी
ज़िन्दगी से डर लगता है।

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14 JUL 2020 AT 11:42

मौत-सा मैं,
ज़िंदगी-सी तुम

कुफ़्र-सा मैं,
बंदगी-सी तुम

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11 JUL 2020 AT 14:56

यहाँ कुछ दिनों से
हालात यूँ हैं
क़लम खो गई है
हर्फ़ लापता है

वो जो उपन्यास,
पढ़ने को तुमने
मुझको दिया था
अधूरा पड़ा है

हालांकि ये भी
जानता हूँ मैं कि
न तुम्हारी गलती
न मेरी ख़ता है

नियति ने जीवन के
उस मोड़ पर अब
दोनों ही हमको
धक्का दिया है

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23 MAR 2020 AT 9:56

तुम भी कितनी नादां थी
जो मुझसे मुहब्बत करती थी

मैं भी कितना जाहिल था
जो तुमसे मुहब्बत करता था

अब कथा कहानी किस्से वो
सब बीत गए सब रीत गए

तुम मझसे शिकायत करती थी
मैं तुमसे शिकायत करता था

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