ज़िन्दगी किसका-किसका परिहास करोगी, तुम किसकी हो सिवाय मौत के अलावा ;तुम्हारा अस्तित्व मौत के आगोश में समा जाने के अलावा और क्या ही है!?
मौत! तुम स्वीकार योग्य जरूर हो लेकिन तुम्हारा यूं अचानक आ जाना बिन बुलाए मेहमान सा लगता है थोड़ी शर्म का चोला तुम भी ओढ़ लिया करो।
तुम्हारा आना उतना कष्टदायी नहीं जितना कष्टदायी तुम्हारी निष्ठुरता है तुम्हारे ख़ुद के इस व्यवहार से हमसे बहुतों की शिकायत हो जाती है ,हम तो जिंदगी है जो सिर्फ़ प्यार ,रिश्ते और ज़ज़्बातों के मोह में इतना फसते जाते है जो तुमको स्वीकार कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है ।
बाकी शिकायतें बहुत है तुमसे लेकिन ठीक है अगर आ ही गयी हो तो चलो ले चलों लेकिन ध्यान रहें हमारे अपने तुम्हारा सम्मान कभी नहीं करेंगे
हमारे अपने सिर्फ़ हमारी ज़िंदगी और ज़ज़्बातों का आदर करेंगे।
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