Raahi   (Raahi✈)
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Joined 12 June 2018


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15 JUN 2023 AT 22:17

Rabji...
वो दूर बहती यादों को
हवाओं संग लौट आने को कहों
कहों थोड़ा मासूमियत से भी
मैं इंतजार करता हूं...उनका घर की चोखट पे।

वो लबों पर बेवजह लिपट जाने वाली
हंसी को भी कोई मेरा चेहरा याद दिलाएं
याद दिलाएं ख्वाबों को भी कोई
मैं बैठा हूं...नींदों के सिरहाने बरसों से।

वो हिचकियों की आहटों को
किसी के संग लौट आने को कहों
कहों थोड़ा जज्बातों से भी
दिल अब भी गुमसुम है...उनके बिना।

वो आंखों पर ठहरी जाने वाली
तेरी तस्वीरों को कोई याद दिलाए
याद दिलाएं धड़कनों को भी कोई
मैं झांकता हूं...महसूस करने के लिए उन्हें।

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11 JUN 2023 AT 10:38

Rabji...
मेरे चारों ओर किताबें बिखेर दो...तो अच्छा हो
मैं बैठ कर उनके लफ़्ज़ों के संग बातें करूं...तो अच्छा हो
मैं किसी चेहरे की उदासी पढूं...तो अच्छा हो
मैं हंसी का फिर उस चेहरे पर रंग बिखेरु...तो अच्छा हो

अच्छा हों...कि रातें अपनी खामोशी लेकर मेरे पास आएं
अच्छा हों...कि मैं उन खामोशियों में लफ़्ज़ों की फिर आहटें भरूं
अच्छा हों...कि खाली पन्ने अपने जज्बातों के लेकर मेरे पास आएं
अच्छा हों...कि मैं उन पन्नों पर फिर एहसासों के अल्फाज़ लिखूं।

मैं किसी का सफर लिखूं...तो अच्छा हो
अच्छा हो कि...मैं राहों का भी जिक्र करूं
मैं किसी का दर्द उधार लूं...तो अच्छा हो
अच्छा हो कि...खुशी मेरी भी थोड़ी उसके पास ठहरें।

मैं आंखों से कही गई किसी हर बात पढूं...तो अच्छा हो
अच्छा हो कि... किसी के सपनों की हर उड़ान भरूं
मैं किसी के गुमसुम सी घड़कनो की आवाज सुनूं...तो अच्छा हो
अच्छा हो कि...मैं किसी के ख्वाबों का शहर बनूं।

मेरे चारों ओर किताबें बिखेर दो...तो अच्छा हो।

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8 JUN 2023 AT 20:04

Rabji...
क्यों सवालों के घेरे में खुद को
हर दफा खड़ा कर देती हो ए जिंदगी
मैंने कितनी दफा तुमसे कहा था
महफ़िलो को जवाब अपनी पसंद के चाहिए।

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9 APR 2023 AT 22:10

Rabji...
चल चकोर...तुझे एक किस्सा सुनाता हूं
एक घर की चौखट
चौखट के अंदर
लिखें खतों की दराजें
दराजों से झांकती
लफ़्ज़ों की आंखें
आंखें जो तलाशें
तस्वीरों में एक चेहरा
चेहरा जो ओढ़े बैठा है
कई रंगों की अठखेलियां
अठखेलियां जो समेटे हुए है
आगोश में एक फ़ानूस
फानूस जो पिरोए हुए है
नक्श एक कशिश का
कशिश जो इश्क का
एक आइना...

सून चकोर...
ये चांद तेरा उसी आइने का टुकड़ा है।

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4 APR 2023 AT 14:14

Rabji...
मैंने उसे कई दफा देखा है
वो मुझे हर दफा...अलग ही नजर आई।

कभी रूबाइयों में घुला इश्क
कभी गजल का बहर लगी
कभी खाली पन्नों की ख्वाहिश
कभी स्याही से भीगी कलम लगी ।

कभी चांद का नूर
कभी खुर्शीद की सुनहरी धूप लगी
कभी जमीं की सोंधी महक
कभी आसमां से गिरती बुंद लगी।

मैंने उसे कई दफा देखा है
वो मुझे हर दफा...अलग ही नजर आई।

आंखें...जज्बातों का रंग हो जैसे
हंसी...जैसे कोई रूहानीपन का दरिया
जुल्फें...छांव का घर हो जैसे
लब...जैसे कोई धड़कनों का किनारा।

कभी फिजाओं का आईना लगी
कभी लगी...मुसलसल अठखेलियों की जुबां
कभी सूफी हर्फ़ों से बुनी कहानी लगी
कभी लगी...झरोखे से झांकती ख्वाबिदा नज़र।

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31 MAR 2023 AT 11:41

Rabji...
चलें वहां...जहां इंतजार है
एक पगडंडी को हमारा...

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13 MAR 2023 AT 14:58

Rabji...
क्यों ना लिखूं उसका.. खुद पर इतराना
नदियों के ये किनारे...उसका हिस्सा है
समंदर की ये लहरें...उसका हिस्सा है
आसमां का ये रंग...उसका हिस्सा है ।

हिस्सा है उसके...सपने ये आंखों के
हिस्सा है उसके...लफ्ज़ ये जज्बातों के
हिस्सा है उसकी...खामोशियां ये रातों की
हिस्सा है उसकी...धड़कने ये दिलों की।

खाली पन्ने पर बिखरी ये स्याही...उसका हिस्सा है
हिस्सा है...ये चांद का नूर उसका
हवाओं में बिखरी ये खुशबू....उसका हिस्सा है
हिस्सा है...ये बुंदे बारिशों की उसकी।

ये धूप...ये छांव...ये नज़्में...ये गज़लें
ये सितारे...ये बहारें...ये राहें...ये मंजिलें
ये सकूं...ये सब्र...ये ख्वाहिशें...ये मरहम
सब हिस्सा है उसके...वो सब का एक किनारा।

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15 FEB 2023 AT 22:54

Rabji....
वो कौन है....
....
....
....

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24 DEC 2022 AT 18:03

Rabji...
मैं एक हूं या दो हूं...या फिर अनेक हूं
ये सवाल हूं या जवाब हूं...या फिर कोई राज हूं
मैं रेत हूं या हवा हूं...या फिर चिंगारी हूं
ये जिस्म हूं या राख हूं...या फिर कोई धूंआ हूं ।

मैं पथ हूं या मंजिल हूं...या फिर सफर हूं।
ये रात हूं या चांद हूं...या फिर कोई सितारा हूं
मैं घर हूं या चोखट हूं...या फिर झरोखा हूं
ये धूप हूं या छांव हूं...या फिर कोई बारिश की बुंद हूं।

मैं कागज हूं या स्याही हूं...या फिर लफ्ज हूं
ये मुसव्विर हूं या तस्वीर हूं...या फिर कोई रंग हूं
मैं चर्ख हूं या पर्वाज़ हूं...या फिर पंछी हूं
ये वस्ल हूं या हिज्र हूं...या फिर कोई मुंतजिर हूं ।

मैं शोर हूं या खामोशी हूं...या फिर धीमी से कही गई बात हूं
ये दरिया हूं या कश्ती हूं...या फिर कोई किनारा हूं।

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12 DEC 2022 AT 12:32

Rabji...
तुम्हें क्या बताऊं कितना खूबसूरत है
उसके आंखों का चुलबुलापन
वो कभी मुझे
नई आदत का रंग सा लगता है
कभी पूरानी शराब सा नशा लगता है
वो कभी मुझे
सर्द हवाओं की दस्तक सा लगता है
कभी बारिशों की बूंदों सा लगता है
वो कभी मुझे
पहेलियों में छुपा राज सा लगता है
कभी किताबों में लिखें किस्सों सा लगता है ।

तुम्हें क्या बताऊं कितना खूबसूरत है
उसके तस्वीर का संदूक
ये चांद...चांद का नूर
टूकडा है...उसकी आंखों की तजल्ली का
ये पंछी...पंछियों की उड़ान
परछाई है...उसके सपनों की तस्वीर की
ये समंदर...समंदर की खामोशी
एक कोना है...उसके दिल के हिस्से का
ये दरिया...दरिया की लहरें
बूंदें है...उसकी होंठों की हंसी की।

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