ज़िन्दगी भी ग़ज़ब के खेल दिखाता है , बनाकर हमें बंदर..... मदारी ख़ुद बन जाता है । कोई क्या जिए इस ज़िन्दगी को..... ये तो ख़ुद हमें दरिया में डुबोए जाता है ।।
मैंने ख़ुशी को चुना है सिर्फ़ तेरे लिए, बाक़ी जितने भी ग़म हैं सारे ... वे सभी ख़ुदा मेरी झोली में डाल दे , तु रखे जहाँ कदम अपने , ख़ुदा उस जगह को मख़मल बना दे ।।
कौन नही चाहता सुख भरे दिन, मग़र ये ज़िन्दगी जब मिली है ...तो फ़िर, इसके अनुसार ही तो चलना होगा , ख़ुशियों के पल अगर हँस के बीताते हो, तो ग़म को भी हँसकर गले से लगाना होगा ।।