यहां शून्य को भी इस बात की चिन्ता है कि कब, कहां, कैसे किसी को कितनी एहमियत देनी है,मैं तो फिर भी लड़की हूं परखूंगी तो सही तुम पर मर मिटने से पहले और इसके लिए वाकईशर्मिंदा नहीं हूं ! -
यहां शून्य को भी इस बात की चिन्ता है कि कब, कहां, कैसे किसी को कितनी एहमियत देनी है,मैं तो फिर भी लड़की हूं परखूंगी तो सही तुम पर मर मिटने से पहले और इसके लिए वाकईशर्मिंदा नहीं हूं !
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बुलंदियों पर ले आए हैं मुझको मन्नतों के धागे,मोहब्बत कैसी भी हो माँ जैसी थोड़ी है🌺 -
बुलंदियों पर ले आए हैं मुझको मन्नतों के धागे,मोहब्बत कैसी भी हो माँ जैसी थोड़ी है🌺
दुर्गम रास्ता,पथरीला मंज़र,असफलताओं की अनंत देहड़ियां, सहस्त्र ठोकरें खा कर ...तुम आज की नारी हो!!!(Read in caption) -
दुर्गम रास्ता,पथरीला मंज़र,असफलताओं की अनंत देहड़ियां, सहस्त्र ठोकरें खा कर ...तुम आज की नारी हो!!!(Read in caption)
अपरिचित सी धारा(read in caption) -
अपरिचित सी धारा(read in caption)
कभी किसी को व्यथा बताते बताते खत्म हो जाती हैं पगडंडियां, शब्द सिधार जाते हैं परलोक फिर भी लगता जैसे मन हल्का नहीं हुआऔर कभी कोई यूं ही समझ लेता है मौनतब लगता हैस्वर्ग अगर कहीं है तो यहीं हैऔर यही है आत्मा को परमात्मा कर देनेवाला प्रेम❤ -
कभी किसी को व्यथा बताते बताते खत्म हो जाती हैं पगडंडियां, शब्द सिधार जाते हैं परलोक फिर भी लगता जैसे मन हल्का नहीं हुआऔर कभी कोई यूं ही समझ लेता है मौनतब लगता हैस्वर्ग अगर कहीं है तो यहीं हैऔर यही है आत्मा को परमात्मा कर देनेवाला प्रेम❤
संसार के सभ्य पुरूषों नेजाना है, समझा हैसुबह को बोझिल उठती स्त्रियों को,आग में पकते हर दिनजिस्म की पिपासा को ;सो हाथ बंटा दिया है इन्होने चूल्हे-चौंके में, घर को अपना घर समझ के।निस्संदेह ही संसार के सभ्य पुरूषों ने सिरजा है अस्ल में प्रेम, गृहस्थी और सभ्यता की परिभाषा को । -
संसार के सभ्य पुरूषों नेजाना है, समझा हैसुबह को बोझिल उठती स्त्रियों को,आग में पकते हर दिनजिस्म की पिपासा को ;सो हाथ बंटा दिया है इन्होने चूल्हे-चौंके में, घर को अपना घर समझ के।निस्संदेह ही संसार के सभ्य पुरूषों ने सिरजा है अस्ल में प्रेम, गृहस्थी और सभ्यता की परिभाषा को ।
कितनी बार निकालना चाहा गुस्सा कितनी दफा छोड़ना चाहा भारीपन लेकिन मुझसे सतत ही चुना गया या तो त्याग या तो प्रेम जिसमें पीड़ा निश्चित थी । -
कितनी बार निकालना चाहा गुस्सा कितनी दफा छोड़ना चाहा भारीपन लेकिन मुझसे सतत ही चुना गया या तो त्याग या तो प्रेम जिसमें पीड़ा निश्चित थी ।
समय का रूख बदला जा सकता हैआकाश का कद नापा जा सकता है और बनाया जा सकता है मेहनत से भाग्य तक पर यह एक मध्यमवर्गी परिवार का लड़का जानता है किकभी नहीं लौटाया जा सकता सादगी से न्योछावर किया हुआप्रेम और धनऔर ना ही कभी टटोला जा सकता है ;बहुत कुछ त्यागा हुआपिता जी का मन🍃 -
समय का रूख बदला जा सकता हैआकाश का कद नापा जा सकता है और बनाया जा सकता है मेहनत से भाग्य तक पर यह एक मध्यमवर्गी परिवार का लड़का जानता है किकभी नहीं लौटाया जा सकता सादगी से न्योछावर किया हुआप्रेम और धनऔर ना ही कभी टटोला जा सकता है ;बहुत कुछ त्यागा हुआपिता जी का मन🍃
चांद देखा सबने किसी ने दाग नहीं देखा प्यार तक देखा फक़त प्यार के बाद नहीं देखा "खामियां चरा-गाह हैमुकम्मल इश्क की,खामियों से बुझ कर जलता किसी ने चराग़ नहीं देखा।क्या देखा है फिर जिसने भी देखा मुझको तन्हामेरी जान के सदके से मुझको आबाद नहीं देखा। -
चांद देखा सबने किसी ने दाग नहीं देखा प्यार तक देखा फक़त प्यार के बाद नहीं देखा "खामियां चरा-गाह हैमुकम्मल इश्क की,खामियों से बुझ कर जलता किसी ने चराग़ नहीं देखा।क्या देखा है फिर जिसने भी देखा मुझको तन्हामेरी जान के सदके से मुझको आबाद नहीं देखा।
जाने क्यों तुम्हे,जबकि सोचते ये हैं कि अब नहीं सोचेंगे ! -
जाने क्यों तुम्हे,जबकि सोचते ये हैं कि अब नहीं सोचेंगे !