Priya Batra   (Priya S. Batra..प्रियांश)
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Joined 20 September 2017


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10 JAN 2022 AT 23:20

ख्वाहिशों में उनकी हम बस तक गए हैं,
देखो इश्क़ में हम कहाँ तक गए हैं,

अंधेरों में जलते दिए से है वो अब,
हम पतंगों के जैसे शमा तक गए हैं,

बिखरा पड़ा था मैं कब से जहां में,
थामा हाथ उनका खुदा तक गए हैं,

ये नज़रे हमारी टिकी हैं उन्हीं पे,
वो नज़रों को लेकर हया तक गए हैं,

लगाया गले से इस कदर उनने हमको,
हम मर के भी देखो यहां तक गए हैं,

'जग्गी' कह दें उन्हें अब के सांसें हैं मेरी,
वो नज़रों से होकर गुमाँ तक गए हैं

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23 OCT 2021 AT 1:47

तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो...
सागर में तूफां हो तो तुम किनारा बनो,
होंठों पे नमी की कमी जो हो किसी के,
ग़म में किसी के खुशियों का इशारा बनो..
अंधेरी रात बड़ी है, सन्नाटों में है ज़िंदगी,
बन सको तो फ़लक पर चमकता सितारा बनो
ना मेरा, तेरा, ना इसका - उसका हो,
बनो तो इंसानियत का प्यार हमारा बनो

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17 MAY 2021 AT 13:29

मिल गई वजह फिर से मुस्कराने की हमें,
वो जो गए हैं, आंखों से छलकते से हैं अब भी...

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8 MAY 2021 AT 20:19

सफ़र जारी है सबका...

लुटे पैमाने हैं, खाली दिल रहता है,
अश्कों में उलझा हुआ तालिब-ए-मंज़िल रहता है,
लहू के कतरे में बसी हो यादें ऐसे उनकी,
मानों तूफ़ानों से इश्क़ में साहिल रहता है,
इबादत में कभी छूटता नहीं नाम रब का,
यूँ ही सफ़र जारी है सबका...

चलना सीखता है, रोता है मचलता है,
राही उठता है, गिरता है, फिर सम्भलता है,
पैरों में छाले लाख पड़े हो लेकिन,
रोक लेता है उठते कदम कहाँ फिर फिसलता है,
नाकामयाबी के कदम चूम कर कामयाबी नसीब हो जाती,
वो राही है, कफ़न बाँधकर मैदान -ए-जंग में निकलता है..

रोक सकता नहीं कोई पैमाइश-ए-ग़म हाथ उसका,
यूँ ही सफ़र जारी है सबका.....

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26 APR 2021 AT 8:35

तुम चले गए ऐसे, समंदर को ना मिले किनारा जैसे,,

तबाहियों की तरह आता है ख्याल तेरे जाने का,
दिल की गहराईयों में धड़कनें खो जाएं जैसे,,

वो खुदा भी कभी पास नहीं लगता,
तू खुद खुदा है, तुझे भुलाएँ भी तो कैसे,,

मेरी नादानियों को हंसकर भुलाया तूने,
लहरों की गहराईयों में दरिया खो जाएं जैसे,,

मैं बुझा सा रह गया तेरे रूबरू ना होने से,
मेरी साँसों में भी फकत ज़िंदा मौत हो जैसे,

इक बार तो पलट कर देख ले ऐ खुदा मेरे,
माँ तेरे बिना नहीं ये ज़िंदगी, ज़िंदगी जैसे...

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23 APR 2021 AT 18:33

छूटे जो हमसफ़र तो छूटे सांसे जैसे जीवन की,
काटें भी तो कैसे काटें रातें तन्हा जीवन की,
खुशनुमा एहसास थे वो, अब सब कुछ बंजर लगता हैं,
बोलूँ जो मैं बोलूँ भी तो बातें कैसे जीवन की,
याद है वो पल जब हम उनसे आंख मिलाया करते थे,
मानो मिल जाती थी तब सारी सौगातें जीवन की,,
हर पल अब इक सूखा सा तालाब के जैसा लगता है,
हो हरियाली भी तो कैसे हंसते खिलते जीवन की,
सोचूँ कुछ खंगाल ही लूँ, अपने दिल की गहराई को,
फिर शायद मिल जाए कोई रस्में खोयी जीवन की,
कहता था खुशहाल हूँ मैं दो माएं मैंने पायी हैं,
कह कह कर ना थकता था ये ऊँचाई मेरे जीवन की,
अब क्यों सूखा लगता है हर अश्क मेरी इन आँखों का,
लगता है बर्बाद फकत ये रस्म-ए-उल्फ़त जीवन की...
Miss you माँ 🙏❤️

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22 APR 2021 AT 20:15

आज फिर मिट्टी के घर याद आते हैं,
कड़कती धूप में शजर याद आते हैं...
यूँ चलते थे राहों में साथ जो कभी,
मंजिलों पर पहुंच कर याद आते हैं...
यूं गुमां हुआ था कभी के मैं साथ हुआ करता हूं उनके,
आज वो ठहरते हुए से मंज़र याद आते हैं...
वो कह गए आज, के नहीं रहे तुम हमारे ज़हन में अब उस तरह,
उनके कहने के मायने में वो इरादा-ए-फिकर याद आते हैं...
मैं चाहूं के लगा ले गले से मौत मुझे,
अपनी रूह में घुले बस ज़हर याद आते हैं...

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17 APR 2021 AT 14:35

माँ,
बस एक शब्द नहीं, एक जज़्बात है,

वो, जो हंसते हुए ग़मों को सह जाती,
मुस्कराते होठों से जीवन का सार कह जाती,
कभी धूप में छांव बन जाती,
तो कभी अंधेरे में रोशनी भर जाती,
माँ, खुदा की ऐसी रहमत जो कभी भुलाई न जाती,
खुद में घुट कर रोती फिर भी खुशियां बिखराती,

बन जाती सहारा चाहे जैसा हालात है,
माँ बस एक शब्द नहीं, माँ हर इक वो जज़्बात है..!

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19 NOV 2020 AT 15:01

दुनिया की हर शै में तेरी खुशबु
बस नहीं है तो एक तू रूबरू

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31 OCT 2020 AT 21:59

यादों से गहरा ज़ख़्म नहीं इन ज़ख़्मों की दवा नहीं

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