मत पूछो
मेरा हालात मुझसे..
मैं कह नही पाऊंगा
सब सच सच तुमसे!
सुनो
समझ सको तो समझो ना
तुम
मेरे इस खामोशी को!
लफ्ज़ो में
हाल-ए बयां अब होता नही मुझसे!
किस सफर में हूँ
की कुछ ख़बर नही मुझको!
जाने कंहा हूँ
की अब भूल चुका हूं खुद को!
हाल-ए बयां
और क्या कहूँ तुमको!
बनाया था रेत की महल
की अब तूफ़ां में मिलता नही मुझको!
तूफ़ां से भीड़ जाऊं या रेत से लड़ जाऊं
आखिर हांसिल क्या होगा मुझको..
खुद मेरे ही पैरों की निशा
अब दिख नही रहा मुझको!
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