prince jha   (अनकही_बातें✍️)
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I am only Responsible for What I say Not for What You Understand
Joined 13 April 2019


I am only Responsible for What I say Not for What You Understand
Joined 13 April 2019
26 APR AT 20:11

अब क्या ही
तुझसे शिकायत करूँ...

इसके भी काबिल
तूने छोड़ा नही मुझे!

हर वो चीज़
जिस से नफरत है मुझे!

बस वंही लाकर
खड़ा कर दिया है मुझे!

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26 APR AT 19:43

मुझे
मेरा ही शिकायत करना है मुझसे..

पर मैं मिलता कंहा हूँ
इन दिनों खुद से!

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25 APR AT 18:53

जो नही चाहिए
बस वही चाहिए...

अजीब कशमकश
में है ये जिंदगी मेरी...

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23 APR AT 19:20

भाड़ में जाए
ये पढ़ाई लिखाई...

आज मेरे पास
मुझे मिल रहे वो दो शब्द नही!

जिससे कर सकूं
मैं हालात-ए बयां मेरी!

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22 APR AT 20:38

औरों के तरह
नही है मसला मेरा .....

गैरों से नही
खुद ही खुद में खुद से....

उलझा हुआ है
इन दिनों किस्सा मेरा !

-


22 APR AT 19:02

ज़िंदगी में
कुछ हो ना हो..

पर माँ के बिना
ये जिंदगी ना हो!

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9 APR AT 16:58

मत पूछो
मेरा हालात मुझसे..

मैं कह नही पाऊंगा
सब सच सच तुमसे!

सुनो
समझ सको तो समझो ना

तुम
मेरे इस खामोशी को!

लफ्ज़ो में
हाल-ए बयां अब होता नही मुझसे!

किस सफर में हूँ
की कुछ ख़बर नही मुझको!

जाने कंहा हूँ
की अब भूल चुका हूं खुद को!

हाल-ए बयां
और क्या कहूँ तुमको!

बनाया था रेत की महल
की अब तूफ़ां में मिलता नही मुझको!

तूफ़ां से भीड़ जाऊं या रेत से लड़ जाऊं
आखिर हांसिल क्या होगा मुझको..

खुद मेरे ही पैरों की निशा
अब दिख नही रहा मुझको!

-


2 APR AT 22:59

कभी खुशी तो कभी गम लिखता हूँ
कभी ज्यादा कभी कम लिखता हूँ!

कभी महकती फूल की खुशबू
तो दहकते अंगार लिखता हूँ!

कभी इश्क तो
कभी हुशन-ए दीदार लिखता हूँ!

कभी प्यार और मोहब्बत की बातें तो
कभी नफ़रतें बेशुमार लिखता हूँ!

कभी औरों से गिला तो
कभी खुद की भी शिकायत लिखता हूँ!

कभी तन्हाई तो
कभी तन्हा दिल की बात लिखता हूँ!

कभी शोर शराबा तो
कभी महफिलों का हर्षोल्लास लिखता हूँ!

कभी औरों की तो
कभी अपना राज लिखता हूँ!

मैं कल आज और
बस आज कल की बात लिखता हूँ!

गजल किस्सा या कहानी कविता नही
मैं तो बस अपना हाले-ए-दिल-ए बयां लिखता हूँ!

कुछ खास नही बस अपने हीं अंदाज में
अपना जज्बात लिखता हूँ

जो किसी एक से भी कह नही सकता!

-


29 MAR AT 9:04


ज़िंदगी से दूर जा रहा हूँ मैं
ज़िंदगी की तलाश में...

इससे ज्यादा लिखने की
अभी हिम्मत नही मुझ में!

कोई चाहो तो
पूरी कर दो इसे...

वरना लिखेंगे हम
फिर कभी ये सफर अपनी!

इस वक्त चल रहा है
खुद से युद्ध मेरी..

काश मैं लिख पाता इस वक्त
शब्दों से अपने भावों को!

तो लिख देता
एक ग्रंथ पूरी!

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26 MAR AT 20:12

यही एक वक्त था
जिसके होने से डरता था मैं..

ना आए ये वक्त
इसके लिए खुद से ही लड़ता था मैं!

अपना सब कुछ था त्याग दिया
जीवन अपना सारा वार दिया..

पर चाहकर भी मैं
नही इसे संभाल सका!

खुद को समझाते समझाते
आखिर मैं खुद से ही हार गया!

आखिर कब तक
लड़ते वक्त की इस वार से!

लड़ते लड़ते थक गए
और हार गयें अपनी हर ख्वाहिश को!

ऐ ज़िंदगी अब
अगले जन्म पूरी करेंगे अपनी हर ख्वाब!

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