#तुम
क्या तुम सोहबत हो, मेरी मोहब्बत या मेरी जरूरत ?
सोचता हूँ, अपना दिल टटोलता हु,
रोटी, कपड़े, मकान से ज्यादा,तुमको अपनी जरूरत मानता हूं।
क्या फर्क हुआ तेरे आ जाने से? क्या बदलाव जो जरूरी था !
कुछ पल दो, चंद लफ्जों में बयान करता हूँ।
मेरी कमजोरियों का जवाब हो तुम, मेरे खर्चों का हिसाब हो तुम,
सुबह शाम तो हो ही, मेरी भूख और प्यास हो तुम।
दर्द की दवा, हर चोट का मलहम हो तुम,
मेरी हर ख़ाहिश की मंजिल हो तुम।
जरूरत तो एक छोटा शब्द है,
हर जरूरत से बढ़कर, जरूरत-ए-खाश हो तुम।
फ़र्क़ तो है ही, मेरे हर हर्फ़ में उसी फ़र्क़ का जिक्र तो है ही,
मेरी जिंदगी का एक नया अंदाज हो तुम।
कविता क्या काफी होगी,शायद कहानियों में बयान करना होगा,
कहानी जो कम पड़ी तो, नमाजों में अदा करना होगा,
जो भी हो,
मेरी कविताओं, कहानियों, नमाजों का जरूरी अल्फ़ाज़ हो तुम,
मेरे हर इबादत का दरखास्त हो तुम।
भोर की सुनहरी लालिमा है हँसी तेरी, सांज की बद्री से खुशनुमा चेहरा तेरा,
लहलहाती ठंडी पवन से जो जुल्फ है, इन्ही से तो है इत्मिनान मेरा ।
और इसलिए शायद, मेरी आँखों का नूर, दिल की धड़कन,
जिंदगी का हर सांस हो तुम ।
बस खुदा से इतनी ही गुजारिश है,
अकेलेपन की कभी खामोशी न हो,
आखरी सांस तक मेरे बस मेरे साथ हो तुम ।
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