मेेरी हैसियत नहीं नज़रें मिलाने की, और वो मुझे पलकों पे बैठा के रखते हैं; कुछ इम्तेहान हैं मेरे हिस्से में , जिन्हे वो अपने हाथों में सजा के रखते हैं; मेरी हर जरूरतों को, अपनी जिम्मेदारी बना कर चलते हैं; मेरी हर तकलीफों में, खुद मरहम बन कर लगते हैं; मेरी छोटी सी नादानियों पर, हर दफा इत्तिला करते हैं; मेरी अनकही बातों का, बखूबी इल्मियत रखते हैं; फिलहाल कुछ नहीं मेरे पास देने को, और वो हमेशा मुझे तोहफों से भर देते हैं।
तस्वीर में देखा है अभी दीदार उनका बाकी है; कुछ ही बातें सुनी हैं उनकी अभी जानना पूरा बाकी है; कुछ पल बुने हैं उनके लिए बिताना अभी बाकी है; कुछ सपने संजोये हैं उनकी ख़ातिर करना साकार बाकी है; मात्र एक किरदार बनी हूँ अभी बनना उनकी ज़िंदगी बाकी है।
ख्वाहिश है एक रात की, किसी शख्स के साथ हो उस चुभती हुई गर्मी में भी, दो गर्म चाय की प्याली और ठंडी हवाओं की बरसात हो बैठे हों छत के किसी कोने में, जो किसी को न याद हो उस मुलाकात के दौर में अच्छी-बुरी हर तरह की, घंटों हमारी बात हो कभी हम उसकी सुने तो कभी अपनी सुनाए, ऐसी एक दूसरे में उलझे रहने वाली कश्मकश का साथ हो बस यूं ही वो खुशकिस्मत रात गुज़र जाए, और एक नई सुप्रभात हो।
ये जुनूनी से इश्क़ का परवान चढ़ने लगा है, लगता है मोहब्बत का मकां बनने लगा है, अब क्या फ़र्क़ पड़ेगा तोहफ़ा-e-तौहीन से परिश्रम की आग में ये ज़िस्म तपने लगा है, कोई नहीं यहां मरहम बनने वाला अब ख़ुदा की रहमत पर विश्वास बढ़ने लगा है, हसरत नहीं मुझे किसी भी हुस्न की अब कलम ही मेरा अलंकरण बनने लगा है।