Palash Chouhan   (Sir Palash Chouhan)
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Joined 20 June 2018


Joined 20 June 2018
19 APR AT 7:43

जब्र जो हमनें सहे है अपने सीने पर
जो तुमने सहे होते तो मर जाते

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2 APR AT 18:13

ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-रंग-ए-सुख़न
हमारे पास कहने को रहा कुछ भी नही

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22 MAR AT 11:45

वो यहाँ से जिसके घर गया होगा
घर वो खुशियों से भर गया होगा

मैं उसके इंतज़ार में ही बैठा हूँ
वो यही देखकर ठहर गया होगा

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16 MAR AT 17:45

मेरी बातों को सुनकर मुस्कुराना याद आएगा
हमारे बाद तुमको ये ज़माना याद आयेगा

कभी दिन याद आयेंगे सुहाने अपने बचपन के
हमें शाखों दरख्तों पर ठिकाना याद आएगा

मुँह अपना मोड़ लेना तुम मोहब्बत की कहानी से
तुम्हे जब इश्क़ मेरा जान-ए-जाना याद आएगा

तुम्हें जब याद आएगी हमारे साथ की होली
तेरे गालों को रंगों से सजाना याद आएगा

कभी जो ढूँढ़ लोगी तुम कुछ लम्हें रिफ़ाक़त के
रिफ़ाक़त के समय यादें भुलाना याद आएगा

पड़े हैं जागे जागे से अभी चेतन अवस्था मे
मगर फिर भी कोई किस्सा पुराना याद आएगा

सफर-ए-जिन्दगानी में वो इक़ दिन ऐसा आएगा
मेरी गज़लों को पढ़कर गुनगुनाना याद आएगा

मुक्कदर की कहानी का सबब मालूम है हमको
मगर फिर भी वो दिल दुखाना याद आएगा

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7 MAR AT 19:04

वो इस बात को दोहराती हुए रोती रही
मुझे कुछ भी कहो सिर्फ़ बेवफ़ा ना कहो

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28 FEB AT 19:43

ना आओगी कभी तुम, ये जानता हूँ मैं भी
लेकिन ये बात मेरी, दिल मानता नही है

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28 FEB AT 13:47

फिर ये हुआ कि उसको अक़्ल आ गई
फिर यूँ हुआ कि उसका इरादा बदल गया

Fir ye Huaa ki usko akal aa gyi
Fir Yun huaa ki Uska Irada badal gya

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26 FEB AT 21:43

मैंने ये सोचा था
मैंने ये माना था
तुम मिलने को आओगी
बातें बताओगी
दिल की हक़ीक़त के
किस्से सुनाओगी
कुछ देर बैठोगी
जब मेरे सामने तुम
मेरी मोहब्बत को
दिल से लगाओगी

मगर जब तुम आयी
पर ना मुझको समझी
ना किस्से सुनाये
ना रस्ते सुझाये
बगैर कुछ कहे ही
बापिस घर चल दी

तब मैं ये समझा
तब मैंने जाना
तुम भी कुछ ऐसी हो
दुनियाँ के जैसी हो

फिर ये हक़ीक़त यूँ दरपेश आयी
ये दुनियाँ पराई है तू भी पराई

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25 FEB AT 13:50

पढ़ लेता हूँ उसकी आंखों की ख़ामोशी
भूल चुका हूँ सब बातें जज्बातों की

Padh leta hu unki aakhon ki khamoshi
Bhool chuka hun sab baaten jazbaato ki

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17 FEB AT 23:23

ना दिल पे ज़ब्त कर कोई अर्ज़ कर कोई शायरी
जिन्दगी के ग़म ख़्वार पेश-ए-नज़र कोई शायरी

उसके लब से जो सुनी सो अब भी याद है हमे
याद यूँ ही रहती नही है उम्र भर कोई शायरी

हमसे नही लिखा गया शेर कोई शबाब पर
हमसे कभी ना हो सकी हुस्न पर कोई शायरी

हमारी सारी उम्र तो ग़म में ही गुजर गयी
कैसें हम किया करें इश्क़ पर कोई शायरी

अबके ग़ज़ल कही तो अपने ग़म सुना दिये
ग़म फरोश बन चुकी है इस कदर कोई शायरी

आज ख्वाहिश थी हमे याद-ए-वस्ल-ए-यार की
पर यहाँ बनी रही शामो शहर कोई शायरी

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