P. Joshi   (P.J."बेचैन")
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Joined 5 June 2018


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3 JUL 2023 AT 10:11

आईने का सामना करो,
चैहरे पे हों दाग, मुहांसे तो मुआयना करो,
हमेशा के लिए न बिगड़ जाये ये सूरत प्यारी,
इलाज़ में लापरवाही मेरे प्यारे भाई न करो!

बदन बेदाग़ हो तो रूह-ओ-दिलो-दिमाग पर ग़ौर करो,
अब देखना है कुछ ख़ास, अंदर की गहराई में और उतरो,
और अपनी,सोंच, विचारधार, चरित्र, वृति और कर्म पर
निगाह डालो और सच ईमान से देखो,
इसमें जरा भी भूल ना करो!
आईने का सामना करो!

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2 JUL 2023 AT 9:07

मन-कमल सु-कोमल भाव-वर्ण आह्लाद उत्सर्जक
इष्ट नवोदित रवि सह शोभित ताल मध्य
मानव उपलब्ध हुआ सत्य को।

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1 JUL 2023 AT 16:08

हम तुम, युग युग से हम
गीत मिलन के गाते रहे हैं
गाते रहेगें, हमतुम!

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1 JUL 2023 AT 15:49

सत्य एक दृष्टिकोण है, झूठ तो विक्षेप है;
सदा सापेक्ष नहीं वह सर्वथा निरपेक्ष है।
निर्लिप्त भाव से ही सदा सत्य हो दृष्टिगोचर,
संभव है सत्य-दर्शन हर पूर्वाग्रह से मुक्त होकर!
चर्म-चक्षु से ही नहीं, बिन आंखें भी दिखता है सत्य;
अन्तर्दृष्टि या आत्मानुभूति को प्रमाण नहीं आवश्यक!
झूठ को सत्य बनाने में है प्रमाण नितान्त अनिवार्य,
सत्य तो है स्वत: सिद्ध, निर्द्वन्द है, है अपरिहार्य!
चिंतन, मनन, अन्वेषण से है संभव सत्य-साक्षात्कार,
तब भी स्व मनोस्थिति पर है निर्भर अपना स्वीकार!
हटा कर ऐनक अर्वाचीन दर्शन, ज्ञान, धर्म, पंथ की;
सुधि लेना होगी पुन: सत्य, सनातन, धर्म-ग्रन्थ की!
सोचा गांधारी ने आजीवन बाँध कर अपने अक्ष,
पतिवृता धर्म से सिद्ध भी होगा ही मेरा सत्य-पक्ष!
किंतु निज नेत्रहीन स्वार्थान्ध अधीश जैसा ही हो जाना,
अर्थात उसके अंध-नीतिपूर्ण नेत्रों से ही देख पाना!
देखता रहा धृतराष्ट्र अपनी अनुज_बधु की मर्यादा लुटते,
बिन आंखें भी उसके पुत्रों द्वारा इस कु-कृत्य को घटते!
आंखें बांधे गांधारी भी देखती रही ये अत्याचार,
कि उसे तो करना है आंखों में तेजस्विता का संचार!
साधना रत है कि पुत्र दुर्योधन की वज्र-काया देख सकूं,
करता रहे ताकि दुराचार निर्भयता से, सदा अमर कर दूं!
इस युग में भी अभी कल तक यही होता आया है,
तब भी नटवर ने लाज रखी सत्य की अब भेष बदल आया है।

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29 JUN 2023 AT 14:37

जो मुस्कुराता है ग़म में
मिलते हैं ऐसे बहुत ही कम,
जो खु़श रहते हैं कम में।

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26 JUN 2023 AT 21:01

जो तुमको मैं आऊं याद।
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17 JAN 2023 AT 19:34

जरा पापीओं को भी देखो प्रभु,,
बस सत का ही सत मत देखा करो।
पाप को फूलते फलते ही देखा है हमने,
सच भी फूले फले कुछ तो ऐसा करो।

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9 OCT 2022 AT 8:45

जिंदगी का गणित बहुत ही आसान है,
दो और दो चार के ही समान है।
जोङ घटाव गुणा भाग इत्यादि
सभी संक्रियाओं का बस यही परिणाम है।

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9 OCT 2022 AT 8:32

ओस की बूँद-सी जिंदगी है, धूप लगते ही सूख जायेगी,
मोती-सी चमकती हुई ये मुस्कान, एक ही पल में रूठ जायेगी।

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13 SEP 2022 AT 20:08

जो आँसुओं की जुँबा से बयां होजाये ग़म के अफ़साने,
बयां में वो असर लाना ये बेचारी जुबां क्या जाने।

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