Noorani Alfaaz   (© समरोज़ जहां “नूर”)
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Joined 1 April 2021


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31 JUL 2023 AT 7:37

न जाने क्या फलसफा है ये ज़िन्दगी,
बिना जुर्म के सजाएं मिला करती हैं!

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21 JUL 2023 AT 13:55

जो हर क़दम पे बिकता है...
ठेले पर,
सड़कों के मेले पर,
बूढ़े दादा की टपरी पर,
स्टेशनों पर रेल की पटरी पर,
ये सुकून हम खुद भी बना लेते हैं,
दो चुस्की सुकून से टूटते रिश्ते बचा लेते हैं,
चाय वो सुकून है...
जो हर कोने में रहता है...
भट्टी पे उबलता है...
हर नुक्कड़ पे पलता है...!
ठहरता है, चलता है...!

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15 JUL 2023 AT 21:39

की राहों में स्टेशन्स नहीं होते..
होती हैं बस यादें..
और बातें...!

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1 FEB 2022 AT 15:04

जंजीर सोच की, समाज की!
जंजीर कल की, आज की!
जंजीर चुप्पी की, आवाज की!
जंजीर जूते की, ताज की!
और वो जो घुटती थी एक लड़की
मर्यादा की चारदीवारों में..
वो भी जंजीर थी शायद,
जो बंधी न थी पर बंधी हुई थी!
जो इज़्ज़तों से लदी हुई थी!— % &

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31 JAN 2022 AT 21:54

और मेरी शैतानियां,
कसम से मिलकर
कमाल का ज़ायका
देती हैं...!— % &

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18 JUN 2021 AT 16:49

बारिश को निहारते...
चुपचाप खिड़की पे खड़ी थी....
ज़रूर वो लड़की गांव से आयी होगी...!!

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6 APR 2021 AT 18:28

मैंने यादों की कड़वाहट ,
कुछ मीठी सी आहट,
दूधिया अल्फ़ाज़ लगाकर,
रंग शाम का मिलाकर,
चाय लिख दिया..!

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13 JAN 2022 AT 9:31

उम्मीद! एक अनदेखा रस्ता...
और हम ठहरे बंजारे...!!!

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8 JAN 2022 AT 12:47

पर...
मुलाक़ात मुद्दतों से
हुई ही नहीं...!

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8 JAN 2022 AT 12:44

पंखों की,
सीख रही हूं उड़ना
किल्क से अपनी...!!

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