इतने अक्स तो चाँद को भी नज़र आये होंगे
उसने अमावस रखी धरती पर रौशनी देखने के लिए..
शायर रखता है कैद कुदरत को अपनी मुहब्बत मे !!
वो एक साया बन भी गया तो अंत आखिर जलना सूरज के लिए..
मेरे तुम्हारे बीच रह जाये आवाज़ तो बस साँसों की..
मै इससे ज्यादा दुनियादारी नहीं रखता
मोहब्बत मे हलाला हराम होता है
मैं सब कुछ चाहता हु बगैर उसके खुद को भी नहीं रखता
कोई खिड़की ही जानती होगी मेरे दिल मे छिपे इस गर्दिश को..
दिल मे जो कुछ भी हो आँखो से साफ नज़र आता है
हम समझाने मे लग जाते है उन दो जहानो को..
वो जिनमे हम ही ना हो तो उनको भी कौन नज़र आता है
कुछ कर्मो से हासिल तो नहीं किया जा सकता..
कर्म मे दान हो तो ये भी झूठलाया नहीं जा सकता
मुझे उसकी आदते याद है , वो चेहरा याद है
मै पढ़ कितने भी साये लू , वो इंसान मुझसे कभी भुलाया नहीं जा सकता
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