"घर की याद"
तेज़ रफ्तार में जिंदगी ना जानें कहाँ जा रही है!
आज फिर मुझे घर की याद सता रही है |
चाहे जहां की हर इनायत मुकम्मल हो जाए,
माँ - बाप की दुआ की कभी बराबरी नहीं कर सकती |
माँ की गोद का सुकून और पिता के हाथों की छाँव,
किसी तकलीफ को ज्यादा वक़्त मुसलसल नहीं कर सकती ||
गुस्ताखी पर माँ की डांट हो या पिता के ताने,
नवाजिश तो हर फटकार में भी छुपी होती है l
चेहरे पर हर वक़्त भले ही न जताते हो,
पर दिल में क़ुरबत तो हमेशा ही होती है ll
मंज़िल की तलाश में सब भागे जा रहे है,
घर पीछे छूट रहा है, हम आगे जा रहे है l
तेज़ रफ्तार में ज़िन्दगी न जाने कहाँ जा रही हैं!
आज फिर मुझे घर की याद सता रही हैं ll
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