Nishant Singh Rajput   (N¡KKy'कालिया')
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Joined 16 February 2020


Joined 16 February 2020
16 JUN 2023 AT 21:15

Rubina : Ek मृगतृष्णा...
आओ , धरती पर तुम्हे महताब से मिलाता हूँ
हैं इक लड़की संजीदा, उसके बारे में बताता हूँ..!

निग़ाहों से वो यार, वार करती है
मुस्कुराहट क़त्लेआम करती है
चाँद से मुखड़े के दीदार कैसे हो ,
जुल्फें उसकी घटा बनके रहती है

बचके रहना इनके मोहपाश से तुम
हैं सय्याद ,मगर सैद लगती है..

मिलता नही खुदा यूँ,बड़ी किस्मत लगती है
हो जाये जो दीदार इनके,ख़ुशनसीबी लगती है
हाँ,पढ़ता हूं जब इनको,मुझे इबादत सी लगती है

यूँ तो मुद्दतें बीती मिले इनसे ख़्वावो में भी
महक इनकी आज भी मेरी रूह में मिलती है..!

These lines for readers...😄
और सुनो! अगर मिलो पढ़ो तुम इनको जब भी
अदब से मिलना दुआ-सलाम करना, समझ गए ना
क्यू ! 😁या समझाने में इक और पंक्ति लगती है !!

#Gustakhimaaf🙏❤️💌

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15 NOV 2021 AT 0:33


To Climb a MOUNTAIN
And I fear of HEIGHTS.

💔 #Impossible

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29 JUL 2021 AT 13:57

ऐ जिंदगी, इक एहसान मुझ पर और कर दे,
रख़ साँसे ये अब, बेहिसाब जख्मों का हिसाब कर दे..!

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29 MAY 2021 AT 16:26

Which are not written
just mere in ink
but engraved by
the whacks of fate
on your Soul !

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18 FEB 2020 AT 19:14

कातिल तेरी मुस्‍कान यह अजब खेल कर गई..
चुरा लिया हमारा दिल❤️,क्‍या गजब खेल कर गई..
खुद मुस्करा कर मुश्किल हमारे लिए कर गई..!!

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20 NOV 2021 AT 0:52

Love Beyond Limits

मेरी मौहब्बत की इंतहा बस इतनी सी है..

तू मौत भी हो ग़र, तेरा ही लम्स चाहूँगा !

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1 NOV 2021 AT 14:18

Kashmaksh-E-Dil


हाँ, कईं मुद्दतों बाद लिख रहा हूँ मैं
भूल जाने उसे, हाफिज़ा कर रहा हूँ मैं

जलाकर औराक़ किताब-ए-माज़ी के
खुद ही खुद से इल्तिज़ा कर रहा हूँ मै

रहे तबस्सुम अना की लबो पर उसके
महफ़िल में जिक़्र-ए-मलाल कर रहा हूँ मैं

भूल जाने को क्या, भूल जाऊ इक पल में उसे
मुक़म्मल जिंदगी गुजरी, इंतिजार कर रहा हूँ मैं

मर जाते हैं इश्क़ में बिछड़ने वाले ,ये बातें 'निशांत'
बातें ही होती है, हक़ीक़त बयां कर रहा हूँ मैं..!

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16 JUL 2021 AT 13:41

न देखे फिराक़ -ए-यार कोई , वो असरार-ए-फ़न यूं रखते हैं
छिपाते है हिज्र में हुए जर्द-ओ-लव यूँ, वो सुर्ख़ी लगाये रखते है

जो पूँछे बा'इस सुर्ख़ आँखों का, वो इशारा हवाओ की तरफ रखते है!

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18 MAY 2021 AT 18:55

Deaths : Just mere the figures !!

आँकड़ो का खेल कुछ यूँ खेला जा रहा है
फिज़ा रंग सफेद,गुलाबी बोला जा रहा है

उजड़ गयी है कइयों की दुनियाँ  मग़र
अख़बार में महज़ आँकड़ा बताया जा रहा हैं

करने दुरुस्त आँकड़े नाकामी के
लाशों के ढ़ेर को रेत में दबाया जा रहा है

इंसानों की बस्ती में कुछ गिद्ध भी है यहाँ
रूह को नोचकर, जेबो में
बद्दुआओं को भरा जा रहा है

वबा के इस क़ातिल दौर में भी,
आपके मनोरंजन का ध्यान रखा जा रहा है

फेंक रहे जुमले ,अटपटे सुझाव कई नेता यहाँ
है कोई जो पहने लँगोट नौटंकी किये जा रहा है

ध्यान रखिएगा अपना, तोड़े जो तिलिस्म भरम का
सुना है , अखबारों में उसे बागी लिखा जा रहा है

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13 APR 2021 AT 15:32

कोई इश्क़ में है
कोई हिज़्र में है

हैं ग़मगीन ये दुनियाँ
पर अपने ही गम में है

हकीक़त से क्या रुबरु होंगे
हर कोई यहाँ मिसाली-रियासत में हैं

ग़र बच जाओ तुम किसी की आँखों में डूबने से
झाँक लेना बाहर कोई बच्चा कई दिनों से भूख में है

तुम लड़ते रहना अल्लाह ईश्वर के नाम पे यूँ
बेकसीं के लिए वो एक मुस्कान, एक रोटी में है

हैं मकाँ जिसके क़ैद हो जायेंगे फिर से वबा के डर से
मज़दूर का क्या, उसकी तो रोजी रोटी सड़कों पे हैं !

हैं हालचाल खराब मगर, 
कहने को क्या, सब मजे में है...!!!

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