हां मैं लड़की हूं तो क्या, मगर मैं कमज़ोर नहीं हूं।
किसी पर बोझ नहीं हूं, किसी पर बोझ नहीं हूं।।
जन्म लेते ही मार देते हो मुझे,या फिर
मां की कोख में ही मेरा अंत कर देते हो।
मेरे पैदा होने की तुम खुशी तो छोड़ो,
मेरे जन्म पर तो तुम मातम मनाते हो।
और, पूछने पर कि, मेरी ग़लती क्या है,
लड़की हो कहकर चुप करा देते हो।
खेलने-कूदने की उम्र में,घर का काम सिखाते हो,
लड़की है तू,पराया धन है,
बार-बार यही अहसास दिलाते हो।
थोड़ी बहुत बस डिग्रियां दिलाकर,
शादी के बंधन में बांध देते हो।
क्या,लड़की का अस्तित्व बस यहीं तक है,
क्यों, लड़की को हर पल समाज से छुपाते हो।
क्यूं,घर की चार दीवारी में कैद कर,
तुम हमेशा मुझे रखते हो,
लड़की हूं तो क्या हुआ,पंख दो मुझे भी
मैं भी उड़ान भरना चाहती हूं,
पढ़-लिखकर करूंगी,नाम रौशन मैं भी
क्यूं,हर पल मार्ग में मेरे, बाधाएं लाते हो
बस अब बहोत हुआ,मत करो ये भेदभाव
हम लड़कियां सहन नहीं कर पाएंगी।
इन सब परिस्थितियों के बाद भी,
हम लड़कियां ही परचम लहराएंगी।।
हां मैं लड़की हूं तो क्या, मगर मैं कमज़ोर नहीं हूं।
किसी पर बोझ नहीं हूं, किसी पर बोझ नहीं हूं।।
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