प्रेम की अपेक्षा न करते हुए भी प्रेम मिला
सम्बंध जब उपेक्षित हुए
तो प्रेम सहानुभूति के सांचे में ढल गया।
मुझे नाम व चेहरे याद रहें या न रहें
पर बोले गए शब्द कभी नहीं भूलते,
सुख में मिला प्रेम स्मृति में न मात्र है
दुख में मिली सांत्वना मन मे कील सी गढ़ी है।
मेरा अस्तित्व जिन्हें निराशावादी लगता है
वह मुझे कटुता से सींचते है,
मेरा आकर जिन्हें छोटा लगता है
वह मेरे भीतर से मुझे निकालने को तत्पर है।
मेरी,मेरे मैं होने की कोई उपलब्धि नहीं है।
समय के साथ,
मेरी दृष्टि में अवश्य कोई खोट आ गया है।
प्रत्येक कुर्सी के नीचे मुझे लोगो का झुंड दिखता है,
बिजली की तारों पर किताबें झूलती लगती है,
हर चश्मा तारक मेहता का चुराया लगता है ,
अखबार में छपे शब्द हवा में भटकते न्यूट्रॉन प्रोटोन प्रतीत होते है।
मैं जानता हूँ यह सारी त्रुटियां मन व मस्तिष्क की हैं,
पर इन उल जलूल बातों में देह का कोई रोल नहीं है।
मेरा यकीन करें,मुझे किसी बात का कोई गहरा दुख नहीं है
बस मेरी स्मृतियों में केवल विदायें है
यही मेरी कथा है।
-