झूठ अपने सुंदर नाज़ुक पंखों से बहुत ऊँचा उड़ रहा था
लेकिन सच भी इस बार अपने धूल भरे पैरों से अड़ गया
दिन रात के सफ़र में कोई भी इन आँखों का नहीं हुआ
रात का सपना सुबह तो सुबह का सपना रात में इनसे बिछड़ गया
झुकी आँखें नरम लहज़ा रखे खामोश सा वो लड़का
अपनी माँ के लिए इस दुनिया से लड़ गया
प्रेम की नई परिभाषा लिखी जाएगी अब
इस बार एक वैरागी एक जोगन के प्रेम में पड़ गया
तवक्को तो यूँ भी कुछ नहीं थी मुझे उससे
लेकिन उसकी नज़रअंदाज़गी का तीर मेरी अना में गड़ गया
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