तेरे मेरे दरमियां रिश्तों में कई डोर रहीं
तुमने हर बार काटी पर बची कुछ डोर रहीं,
ताल्लुक का पीछा करके मैंने फ़र्ज़ अदा किया
हुस्न के जलवे बिखेर तुमने नाम बेवफा दिया,
महज रंगरेलियां रवानियाँ ही तुम्हें भाती रहीं
इश्क की बारीकियां कब कहां तुम्हे आती रहीं,
कद्र और कदरदान दोनो से तुम खफा रहें
तुमने तो कितनो को दिखाया की तुम वफ़ा रहे,
वफा से तुम्हारा ताल्लुक कब का ही टूट गया
जिस दिन तुम्हे चाहा उसी दिन मेरा करम फूट गया।
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