कितना गलत हूं मैं जो तुझ में खुद को ढूंढता हूं,
दिल लगाकर पत्थर से सुकून ढूंढता हूं।
रात के किसी कोने में एक सबक ढूंढता हूं,
दौड़ना था कभी इस जमाने से आगे लेकिन संग तेरे कांटों की राहे ढूंढता हूं।
जानता हूं कर देगा यह दिल बर्बाद मुझे,
फिर भी संग तेरे खुशियों भरे लम्हे ढूंढता हूं।
कितना गलत हूं मैं जो दहकती धूप में छांव ढूंढता हूं,
गमो से भरी ढलती शाम में अपनी सुबह ढूंढता हूं।
काली रात के इन घने अंधेरों में उम्मीद से भरी एक रोशनी ढूंढता हूं।
टूट कर बिखर चुका था जो वह पूरा ख्वाब ढूंढता हूं,
मेरी जिंदगी के हर अधूरे सवाल का तुझ में पूरा जवाब ढूंढता हूं।
कितना गलत हूं मैं जो तुझ में अपने टूटे दिल की जान ढूंढता हूं,
खो चुकी है जो ना जाने कहीं वह पहचान ढूंढता हूं।
तुम में अपना कहीं खोया हुआ सम्मान ढूंढता हूं,
सामने इस दुनिया के अपना अभिमान ढूंढता हूं।
कितना गलत हूं मैं तेरी फरेब से भरी बातों में सच्चाई ढूंढता हूं,
किसी बंजर जमीन पर बरसात का पानी ढूंढता हूं।
कितना गलत हूं मैं जो तुझ में एक अधूरी प्रेम की पूरी कहानी ढूंढता हूं।
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