।। सच्ची कविता ।।
सच्ची कविता कभी बदनाम नहीं होती।
सच्ची कविता कभी गुमनाम नहीं होती।
ये नुक्कड़-गली-बाजारों में आवारा,
गिरती-छिजती, यूँ धूल-मिट्टी नहीं ढोती।
अधनंगी वाक् पटुता में खुद को खोकर,
ये कभी भोंडी अश्लीलता नहीं बोती।
युगों! बंद तिजोरी में बाट जोहती, बस
तुम्हारे सौम्य स्पर्श के लिए रोती।
परिश्रमी, परोपकारी मगर रहस्यमयी,
अंधियारों में जागृत, कभी नहीं सोती।
सूर्य सखी, हृदय नभ में उदित होकर के,
पाठक के समूचे पाप-क्लेश को धोती।
सच्ची कविता शुभ भावों से संस्कारित,
श्वेत हृदय सिंहासन पर सुशोभित होती।
प्रकाण्ड पंडिता, माता अदिति की शिष्या,
ये है अति शुभ गुण सुंदर, माणिक्य-मोती।
✍️मुक्ता शर्मा त्रिपाठी
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