Mukta Sharma Tripathi   (#मुक्तामुसाफिरपरिंदे)
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Joined 26 April 2018


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3 FEB 2023 AT 17:24

शुष्क हृदय में
इक नखलिस्तान फूट पड़ता है।
इक सरस सा चश्मा छूट पड़ता है।।
फिर जब तक मैं
तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर ना पा लूँ?
फिर जब तक मैं
तुम्हारी हर थाह को ना नाप लूँ?
मैं कैसे बाहर आ सकता हूँ।
तुम किताब और मैं
कैसे पाठक कहला सकता हूँ??
बस तुम्हारी, सरस, मधुर
शब्द लहरियों की तरंग से
हो तरंगित मैं,
जीवन में सब कुछ पा सकता हूँ।।
✍मुक्ता शर्मा त्रिपाठी

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3 FEB 2023 AT 9:19

क्यों रहते हो तुम दूसरों से डरते?
क्यों हिचकिचाते कदम हो धरते?
जरा! हिम्मत के पंख फहरा कर,
खुद पर विश्वास क्यों नहीं करते?
✍️मुक्ता शर्मा त्रिपाठी

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2 FEB 2023 AT 16:52

Life is not to mere think about others.
For them, you're not a dish of supper.
It's okay to serve whole heartedly to them,
But take out time to discover and recover.
✍️Mukta Sharma Tripathi

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2 FEB 2023 AT 16:49

Look at the blossoms those fell.
Those who silently sadly spell.
Let's gather them in your hands,
They are still enriched with smell.

These are not made only to sell.
Each one has own story to tell.
Let's gather them in your hands,
They are still enriched with smell.
✍️Mukta Sharma Tripathi

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31 DEC 2022 AT 0:42

मिनटों के लिए,
ज्यों सेकेंड भागते हैं।
घंटों को सरकाने वास्ते
मिनट हांफते हैं।
यूँ ही हम भी भागते हैं।
दिन रात जागते हैं।
क्योंकि रोज
शाम की पगडंडी पर बैठ
लंबे, उबाऊ दिन की
हमें थकन जो मिटानी है।
आज साल के आखिरी किनारे पर,
रात ने की है चुगली कि
सूर्य कल, इधर से उगेगा?
छोटी सी ये बात
बस तुझको बतानी है।
तुझको बतानी है.. तुझको बतानी है।।
✍️मुक्ता शर्मा त्रिपाठी

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29 DEC 2022 AT 0:06

Like a star sometimes we glow.
Sometimes life gives us blow.
But it's an another opportunity,
To pick up new seeds and sow.
✍️Mukta Sharma Tripathi

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18 DEC 2022 AT 23:32

हम ऐसे, तुम वैसे।
वैसे को छोड़, खुद को तोड़,
क्यों हम ही बने तुम जैसे??
#मुक्तामणि

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14 DEC 2022 AT 16:06

निज हृदय पढ़ने से पहले,
दूसरों को हम पढ़ते हैं?
मन के चैन को छोड़ सभी,
चिंता राह पर बढ़ते हैं?
क्यों भरते हो ये अज़ाबें?
हम सब भी तो हैं किताबें!
✍️मुक्ता शर्मा त्रिपाठी

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12 DEC 2022 AT 17:49

न मुश्किल से घबराते हैं।
न छल फंदे अटकाते हैं।
कर्म का धर्म निभा कर के,
काँटे भी मुस्कुराते हैं।।
✍️मुक्ता शर्मा त्रिपाठी

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6 DEC 2022 AT 18:30

।। सच्ची कविता ।।
सच्ची कविता कभी बदनाम नहीं होती।
सच्ची कविता कभी गुमनाम नहीं होती।
ये नुक्कड़-गली-बाजारों में आवारा,
गिरती-छिजती, यूँ धूल-मिट्टी नहीं ढोती।
अधनंगी वाक् पटुता में खुद को खोकर,
ये कभी भोंडी अश्लीलता नहीं बोती।
युगों! बंद तिजोरी में बाट जोहती, बस
तुम्हारे सौम्य स्पर्श के लिए रोती।
परिश्रमी, परोपकारी मगर रहस्यमयी,
अंधियारों में जागृत, कभी नहीं सोती।
सूर्य सखी, हृदय नभ में उदित होकर के,
पाठक के समूचे पाप-क्लेश को धोती।
सच्ची कविता शुभ भावों से संस्कारित,
श्वेत हृदय सिंहासन पर सुशोभित होती।
प्रकाण्ड पंडिता, माता अदिति की शिष्या,
ये है अति शुभ गुण सुंदर, माणिक्य-मोती।
✍️मुक्ता शर्मा त्रिपाठी
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काव्य बालवाड़ी #muktasharmatripathi

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