Mukta mukta  
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Joined 1 May 2018


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7 FEB 2021 AT 13:55

साथ कोई नही देता फिर, निभाते हैं कुछ रिश्ते फिर, एकेले रह जाने का डर है फिर,,,,,

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7 FEB 2021 AT 13:51

कभी कभी काट लेते कभी कट जाती है ,जिंदगी हैं हर साँचे में ढाल ही लेती है



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1 FEB 2021 AT 14:51

काटती दोपहरी जीवन की हो या फरवरी की कभी कभी यादे अनकही कहानी अधूरी सी छूटता हाथ कही साथ

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1 FEB 2021 AT 14:44

इश्क की भाषा का हर जानकर कम समझता था मुझको ,हम उसको समझाते रहे वो कुछ और ही समझता था

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10 JAN 2021 AT 21:10

याद तो चारों पहर करा आप को पर याद हम तब आये जब कोई वजह ना थी शुभ रात्रि

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14 AUG 2020 AT 8:38

हक तो नहीं जाता सके माँ की अर्थी तक का बेटियों को जाते जाते माँ भी पराया कर जाती हैं

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13 AUG 2020 AT 9:05

जो सब को समझ आ जाए वो लिखावट ही कैसी, खुली किताब सी हो नारी हो तो बगावत ही कैसी

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13 AUG 2020 AT 8:40

कुछ झटपट से पल और अटपटी सी कहानी यही लिखने के लिए काफ़ी थे ना

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13 AUG 2020 AT 8:35

औरत तो वहीं पिसती रह गई ना हिन्दू हो या मुस्लिम ना न्याय और अन्याय तोडने सामाजिक बंधन कुछ दस्तावेज सिमटे वोही है हाथ,,😶😶

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13 AUG 2020 AT 8:01

मध्यम वर्गीय परिवार की महिला का तो गुरुवार ही इतवार होता है ना सुप्रभात,,😍

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