न माँ न बाबा, और ना ही परिवार का कोई सदस्य, न गांव का कोई बड़ा बुजुर्ग कोई डॉक्टर नहीं न ही किसी न्यूज पेपर की कोई हेडलाइन न कविताएं और न ही किसी अभिनेता या अभिनेत्री के विज्ञापन और न ही रेडियो की कोई आवाज़ न कोई नेशनल हीरो न ही कोई राजनितिक पार्टी और न ही कोई सरकार कर सकती है आज की आवाम को जागरूक... मुझे लगता है "हादसों को बना देना चाहिए जागरूकता का ब्रांड एंबेसडर।"