कुछ अनकहे, अनसुने शब्द लिखती हूँ मैं
क्या कोई इन्हे समझ पायेगा....
लिखने से पहले अंतरआत्मा झकझोरती हूँ मैं
क्या कोई इस ह्रदय पीड़ा को महसूस कर पायेगा....
कभी कभी आसुओं की स्याही से हाले जिंदगी लिखती हूँ मैं
क्या कोई इसे पढ़ समझ पायेगा.....
अपनी ख़ुशी को सभी के लिए संजोती हूँ मैं
क्या कोई मेरी ख़ुशी संजो पायेगा........
कभी कभी ना लिख ही पाती, ना ही बोल पाती
क्या कोई मेरी आँखो को पढ़ मेरे अरमानों को समझ पायेगा....
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