उसके हाथों की कठपुतली बन गया था मैं,
ना चाहते हुए भी उसका गुलाम बन गया था मैं,
मानता था खुदा को मैं भी कभी
उसके हुस्न की परस्ती करने लगा था मैं,
इंसान तो मैं भी ईमान वाला था
साथ उसके काफ़िर होने लगा था मैं,
जैसा चाहती वैसा नचाती बो मुझको
सामने उसके तवायफ सा बन गया था मैं,
उसके हाथों की कठपुतली बन गया था मैं
ना चाहते हुए भी मुर्दा सा गया था मैं...
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