Mohammad Faiz   (Faiz Ahmad)
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Joined 16 January 2018


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Joined 16 January 2018
2 DEC 2021 AT 14:40

अनगिनत अनकही बातें ठहर सी गई हैं मन में
शब्दों में पिरोउ या रास्ता दिखाऊं अश्कों का
मन उलझन में फसा है शोर की गूंज है हर पहर
यादों का बोझ लिए भटक रहा डगर डगर

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15 SEP 2021 AT 2:52

चले थे शमा जलाने और मकान ही फूक आए
जिसके होने का गुमान था उसे अनजान कर आए

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14 JUL 2021 AT 23:44

मन ये मनचला जाने कहां खो सा गया है
मुश्किलों भरे इस सफर में तन्हा हो गया है
चल पड़े उस राह रोशनी की किरन जो नज़र आए
घने काले रास्ते में गुमनाम सा हो गया है

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11 FEB 2021 AT 3:01

Mere ghar ke samne ek saksh rehta hai
Har subah in nazro me jiska intezar hota hai
Or jis roz wo nazar nahi aata
Wo din ek Saal sa gujarta hai

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24 JAN 2021 AT 23:48

मुझसे मेरे इश्क़ की गहराई ना पूछ सनम
मै हर बार मिलता हूं तुझसे पहली बार की तरह

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25 DEC 2020 AT 6:32

इस पेंचीदा ज़िन्दगी की कशमकश में फंसा हूं यारो
अब खुद को साबित करूं या ज़िन्दगी से फना हो जाऊं

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9 OCT 2020 AT 14:57

इश्क़ और उम्मीद जब हद से बढ़ जाए
तो शिकवे होना भी लाज़मी है

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9 OCT 2020 AT 6:02

दरियाई मौजों सा है अंदाज़ ए इश्क़ उनका
अब कश्ती पार लगा दे या मौजों में समा ले

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16 AUG 2020 AT 13:36

तुमसे बात करते भी तुम्हारा खयाल आता है
तुम्हे खो देने का डर हर रात नींद से जगा जाता है

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11 AUG 2020 AT 12:05

चाहे लफ्जों से कुछ ना कहो तुम
नज़रों ने तुम्हारी इकरार कर लिया

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