जब मुझमें मैं ही सराबोर था जीवन में बस जीने का जोश था और मैं तो हर घड़ी जीता दौर था नन्हें कंधों पे सपनों का शोर था पर कंधों पे ना ही उनका ज़ोर था याद अब भी वो समय कुछ और था जब मुझमें मैं ही सराबोर था— % &
मेरे एहसासों को पढ़ लेती थी वो बिन बोले ही हर पल साथ निभाने आती थी वो बिन बोले ही मेरे मन को इतना जान चुकी थी कि बिन बोले ही मेरे इज़हार ए मोहब्बत को अपना रही थी वो— % &
कुछ भी कह सकूं तुझसे अब इस हाल में हूं कहां दर दर ठोकर इतनी खा बैठा अब जख्म भी सभी बेज़ुबां है बस धुआं मेरी नज़्मों में अब नज़्मों में आतिश कहां लहरों की ही तो चाह है साहिल से रिश्ता अब कहां
वो भी ज़माना जाली जिसे दिल में बसाया उसने दिल से दी गाली जिसे दिल से दिया उसने मेरे हक का किया खाली जिसे समझा प्यार उसने प्यार पे तोहमत डाली जिसे कहा तुम मेरी उसने कहा तुम कौन हो जानी?????