तुम्हारी मेरी काया एक सी हैं,
और देखो मोह ए माया भी एक सी हैं.
एक सी हैं पसंद ए सोच हमारी,
और देखो छत्र ए छाया भी एक सी हैं..
इतना कैसे मिल जाते हो बराबर हमसे,
हम मिले नहीं एक दुसरे से देखो कितने पल से.
तुम झगड़ते रहते हो रोज बराबर हमसे,
एक सी हैं सीरत और एक सा हैं गुण हममे,
बताओ मनाये तो मनाये कैसे..
कई बार बिन मनाये भी मान जाते हों,
मेरी तखलिफ तुम बिन कहे भी जान जाते हो,
कहते हो परवाह नहीं करते ,
पर मेरे ख़ातिर दुसरो से लड़ जाया करते हों,
तुमसे नराज होकर भी तुम्हारे ही ख्याल आते हैं,
और कहते हो मेरा नाम क्यो नहीं लेते,
अब क्या बताये की खराब हैं दुनियाँ इनके नजऱ लग जाते हैं..
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