पन्नों पर अक्षर उकेरे, जब से मैनें लेखनी की शुरुआत की
कुछ ख़्वाहिशें जहन में दबी रह गई, जिसकी मैने आस की
खैरियत से रखी दिल को सभांलकर, काफी है इतना भरोसा,
वजूदों से नही मिटता कुछ फ़रमान, जो मैने उसको पास की
शिकायतें करते है ख्व़ावों से, मुकम्मल से नही की कोई फ़रमाइश,
ग़र मोहब्बत काँच सा है तो क्यों मैने इबादत उसकी खास की
हुस्न पे धार , आँखों पर अश्क़ों की क्या कमी की गुंजाइश,
टूट के तो बिखरे मोती से बने, सौंदर्य की मैनें उससे आस की
निगाहों की मुसकुराहट, होठों की हँसी की मैनै कोई की आज़माइश,
साँसों की नरमी, दरम्यान सी कई दूरिया देखी फिर एहसास की
बेहद बेदर्दी सी दुनिया , साज़िशों की यहाँ मीनार है "मीनू"
हकिक़त तो दूर की बात है,सवंरती ख्व़ाव की जो उससे आस की
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