Mansi Pavitra   (पवित्रा)
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Joined 25 April 2019


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7 APR AT 21:43

ठाणी पहुंची महल में,दीख्यो तहां नंदलाल
सुध-बुध भूली बाबरी,रोबत नैना लाल
पूछो रूप श्री नाथ सों,प्रभु दरस कौ हाल
छवि कमल बखायो ना,हरषत चित मृनाल


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24 SEP 2023 AT 19:48

बात 'ईर्ष्या' की नहीं थी,
बात थी तुम्हें बांटने की 'कुंठा' की!!

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14 SEP 2023 AT 21:38

सुनो!
मैं आज भी मानती हूं, तुम्हें 'टाईम ट्रैवलर',
जो एक याद से दूसरी याद में घूमे,
क्या वो ट्रैवलर नहीं?

तुम आओगे तो, सबसे पहले
मेरे भूतकाल से टकराओगे,
तब मेरे कमरे की वो किताबों वाली अलमारी,
उसमें तसल्ली से खोजना,होंगे दो प्रेमपत्र,

एक को पढ़ना, दूजे को छोड़ देना
दूजे में हैं सिलवटें,
इंतज़ार के गुस्से में कागज़ मरोड़ दिया था मैंने,
बिलकुल खाली पन्ना!

कहते थे न तुम,
तुम गुस्से में एक शब्द नहीं कह पाती,
और सीधी ओर निचले कोने में, होगा लिखा
तुम्हारी......

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12 SEP 2023 AT 8:00

हे राम! हे वासुदेव!
पीड़ा 'कौशल्या' की हो या 'यशोदा' की
बात तो एक ही है

पीड़ा 'राधिका' की हो या 'सिया' की
बात तो एक ही है

पीड़ा 'बृजवासियों' की हो
या 'अयोध्यावासियों' की
बात तो एक ही है

मैं जानती हूं
आप जानते हैं
आपसे प्रेम करना यानी
आपसे दूरी में तड़पना।

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26 AUG 2023 AT 8:22

हे श्याम!
'रंगभेद' का चश्मा पहने हुए मेरी आंखें,
मैं मूर्ख, गुज़र रहा था,
वृंदावन की कुंजी गली से।

आपके दास से व्यंग्य करते हुए कहा था मैंने,
तुम्हारे स्वामी जैसे
काले वर्ण को
केवल मिली है घृणा।

मंद हंसी में बोला था वह,
तुझे भी गानी पड़ जाएगी इसी काले रंग की महिमा!

'असुर' के रूप में मारा गया था मेरी आंखों का रंग-भेद

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19 AUG 2023 AT 21:50

तुझे क्या पता!
की "इश्क - ए - जहां" में,
यह भी इक सज़ा है,
की मोहब्बत भी करते हैं
और सिर्फ दोस्त ही रहना

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1 AUG 2023 AT 12:00

मां अगर चूम ले तो,
दुख अपना असर छोड़ देता है!

मां का रूठना,
जैसे
रूठ गईं नदियां दुनिया भर की!

मां कोई नदी जैसी ही तो है
नदियां कुर्बान करती रहीं
सागर के लिए अपना अस्तित्व सदा!!

मां को मनाना, जैसे सूखी नदी में जल भरना!

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31 JUL 2023 AT 13:31

सुनो!,
मरुस्थल की भीषण गर्मी ने,
तुम्हें बना दिया 'नागफनी'

नागफनी को,
'प्रेम' स्पर्श दो या 'घृणा' स्पर्श
वह नहीं करता भेदभाव!

चुभेंगे केवल कांटे ही,

इस मरुस्थल के बाग बनने तक
मेरी उंगलियां रहेंगी 'रक्त रंजित'

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26 JUL 2023 AT 20:18

हे! महादेव,
आप हमारे कृष्ण हैं

हे! कृष्ण,
आप हमारे महादेव!

दोनों स्वरूपों में,
पिया गया था विष का प्याला।

महादेव ने 'समुद्र मंथन' में,
और श्री कृष्ण ने कब पिया विष ?

चिंतन करो, विष के प्याले से
कैसे जीत गईं थी दीवानी मीरा!!

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9 JUL 2023 AT 14:56

गुरुत्वाकर्षण, प्रेम है!
प्रेम में गिरते हैं पतझड़ के पत्ते,
और
पतझड़ के ही किसी पत्ते ने
रोककर, कहीं थी यह दो बातें,
कि 'दो' तरह के उसे मिले लोग,

किसी ने हथेली पर उठा लिया,
और कभी कुचला गया पांव से,

प्रेम में गिरना संभल कर।

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