Mamta Dabral   (ममता)
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Joined 17 October 2018


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Joined 17 October 2018
10 NOV 2022 AT 22:48

अंत पर्यावाची है आरंभ का ,
नए राह का नये सवेरे का ।

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19 JUL 2022 AT 18:26

मेरी प्रेम लिखी सारी कविताएं व्यर्थ सी लग रही है ,
मेरा तुम्हारे लिए प्रेम ना जाने क्यों दयरों में बंध गया है

"जबकि हमारे ये प्रेम स्वतंत्र रहने के लिए बाध्य था"

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20 MAY 2022 AT 14:36

भूल कर सारे वादे नए वादों में अटक गया है मुसाफिर ,
नए मोड़ की तलाश में कुछ यूं भटक गया है मुसाफिर ,

जो जुस्तजू थी मंजिल के लिए वो अब दरकिनार है ,
टूट कर बिखरी है मंजिल यूं लगता है बरसो से वीरान है ,

Continue.........🖋️📓



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26 MAR 2022 AT 22:52

मेरा जानकर टेढ़ी बिंदी लगाना ,जो जरा सी अखरती है तुम्हें ,
वो अक्सर तुम्हारे सही किये जाने पर ही निखरती है मुझपर ।

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18 MAR 2022 AT 22:36

उम्मीद की किरण बिखर सी रही है ,
मानो मेरे लेखन पर बेड़ियां लगी हो ।

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8 FEB 2022 AT 14:46

इंतेज़ार इजहार से परे है जो ,
बस वही पर अटका हुआ है दिल ।

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11 JAN 2022 AT 23:44

मैं दरिया बनकर रुकी हूं ,
मेरा समंदर मुझे ढूंढ लेगा ।

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1 JAN 2022 AT 21:12

इक दफा फिर चोटिल हो गया वो शख्स ,
जो अपनो के दिये जख्मों से उभरा था अभी ।

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21 DEC 2021 AT 23:15

मन के अंधेरों में उम्मीदों के दियों से उजियारा कर ,
तोड़ के जंजीरों को नए ज़िंदगी से रूबरू कर ,

खिलते हैं कमल खिचड़ो में तू उन में मोती बन ,
छीन ले खुशियां अपनी तू अपनी मोहब्बत बन ,

अपने ज़ज़्बातों को सूरज की तपिश बनाकर ,
तू दहक अमावस्या को जुगनुओं सा जल कर ,

मन के अंधेरों में उम्मीदों के दियों से उजियारा कर ,
तोड़ के जंजीरों को नए ज़िंदगी से रूबरू कर ,

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20 DEC 2021 AT 20:23

साज सज्जा में बिंदी अखरने जब लगे ,
सुर्ख होंठों की तरफ दिल जब बढ़ने लगे ,
तब तुम रूहानी इश्क़ से मुख मोड़ लेना ,
जला के प्रेम खत तुम गुलाबों से दोस्ती करना ।


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