Luvkush   (लवkush)
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Zid✊....Hai toh hai ,,

कोई पढ़े तो समझे हमें
Joined 9 October 2018


Zid✊....Hai toh hai ,,

कोई पढ़े तो समझे हमें
Joined 9 October 2018
14 MAR 2023 AT 17:38

Satisfaction comes from doings not by procastination




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7 JAN 2022 AT 11:22

कौन यहाँ ज़माने में अमीर बैठा है,
हर कोई तो माँगता है, सब फ़कीर हैं।

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7 JAN 2022 AT 0:32

Darkhast hai meri tujhse
sambhaal lena tu mujhe
Jo main sambhal nahi paau
ishq mein tere....
Darkhast hai meri tujhse
Aawaz dena tu mujhe
Gar dur main nikal jaau
ishq mein tere...
Mujhko nhi andaza hai
Kitna ye ishq jyada hai
Jaane kya ab irada hai
ishq mein tere...Oo..
Darkhast hai meri tujhse
Mujhko jara tu rok le
Gar hadd ko paar kar jaau
ishq mein tere...
Darkhast hai meri tujhse
Sambhal lena tu mujhe
Jo main sambhal nahi paau
ishq mein tere..ho. ishq mein tere...



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5 JAN 2022 AT 0:41

What people say "Hardwork", is actually nothing but the 'work out of your comfort zone' .





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28 NOV 2021 AT 20:12

टूटा हूँ..बिखरा हूँ... मगर फिर से संभला हूँ
ये दिल नही पत्थर है..जो हर गम को भुला दे
हर मंज़र.... गुजरा है यहाँ तो बड़ी ख़ामोशी से
अब वक़्त की भी क्या औकात जो ये हमको रुला दे

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23 JUL 2021 AT 13:33

ताउम्र जिसे पाने को , मुसाफिर के लिबास में हम थे
वो शख़्स हमें नज़र तक ना आया.. जिसकी तलाश में हम थे

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30 JUN 2021 AT 10:41

ना ज़िंदगी नें कोई कमीं ख़्वाहिशों में रखी
ना वक़्त नें कोई कमीं साज़िशों में रखी

ना थमें सिलसिले हमारे होंठों के मुस्कुराने के
ना आंखों ने कोई कमीं बारिशों में रखी

आवारगी बेतुकी है मुझमें, मगर तुमसे मिलने की
ना दिल नें कोई कमीं गुज़ारिशों में रखी

वो ख़्वाब जो कभी ज़हन का सुकून-बख़्श थे
ना उन्होंने भी कोई कमीं रंज़िशों में रखी

तक़दीर तो राज़ी थी उनसे रिफ़ाक़त को मग़र
ना सितारों ने कोई कमीं गर्दिशों में रखी

के शराब हो शबाब हो चाहे कोई भी नशा हो
भला मोहब्बत से ज़्यादा ख़ुमारी कहाँ इन-नशों में रखी



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19 MAY 2021 AT 11:12

कोई चिराग़ सा बन जाऊँगा मैं तेरी गली का
जो हर आलम में तेरे शहर को आबाद रखेगा
इस हद तक चाहूँगा तुझे ,के अगर तू ना भी मिला
फिर भी उम्र भर तू मुझको याद रखेगा

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3 APR 2021 AT 11:40

बेरुख़ी वक़्त की हमसे कुछ इस क़दर है
ना राह , ना मंज़िल , ना कोई हमसफ़र है

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21 FEB 2021 AT 17:33

तन्हा न जानें क्यों हर महफ़िल लगती है
इस आलम में ज़िन्दगी बड़ी मुश्किल लगती है ,

सुकूँ की सुबह के इंतेज़ार में था ये दिल
मग़र शाम ग़मों की बड़ी ही तहदिल लगती है ,

अंदाज़ा न था यूँ इस क़दर बिखर जानें का
के सारी दुनिया ही अब मुझसे क़ाबिल लगती है ,

सहमी सहमी सी हैं हर धड़कन इस दिल की
इक बेचैनी सी हवाओं में जैसे शामिल लगती है ,

बेवज़ह ही क्यों भला वक़्त दें उस सफ़र को
किसी ग़ैर की ही जब उसकी मंज़िल लगती है

गर गुज़र जाऊँ तो इसमें क़ुसूर नहीं खुदा का
ज़हन की हर साँस ही अब तो क़ातिल लगती है ,

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