फुरसत के दो पल थे और
तनहाईयो का आलम था ।
इत्मीनान से अपनाही दिल......
खोल कर बैठ गए, "ललित..." ।
वहाँ..., कई रिश्तों की अर्थियां
और यारो की गद्दारिया मिली ।
आँसुओ से भीनी मिट्टी में,
कई ख़्वाहिशें दफ़न मिली...।
दिल के जख्म दिल में रहे
साहब, यही अच्छा होता है,
जज्बातों के बारे में अक्सर
दिल तो बच्चा होता है...।
- प्रा. डॉ. ललित विठलाणी
सावंतवाडी
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