Kunal Kumar Sah   (Kunal Kumar Sah)
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Joined 16 September 2020


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Joined 16 September 2020
25 MAR AT 7:22

तेरे हाथों से रंग लगवाने के लिए हूं बेकरार,
बेचैन होकर तड़पते मन को है तेरा इंतजार।
तन तो सब रंग रहें हैं तू मेरा मन रंगने आना,
प्यार के रंगीन रंग से ही मुझे आएगा क़रार।

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21 MAR AT 16:04

लगता है इस बार भी वो नहीं आएगी,
अबकी होली भी मेरी यूं बेरंग जाएगी।
लाल जोड़े में न सही ऐसे ही आ जाते!
तुम बिन कोई रंग मुझे छू भी न पाएगी।

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14 MAR AT 15:20

रिश्तों के मिठास के लिए कड़वी घूंट पीना पड़ता है,
अपनों की खुशी के लिए अपनी खुशी त्यागना पड़ता है।
खुशियों के पीछे कई गम छिपे रहते है जीवन का सत्य है,
एक जिंदगी जीने के लिए हमें कई बार मरना पड़ता है।

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13 MAR AT 20:54

जीवन में जब हो सत्य का अहसास,
जब हो कोई मन में आपके ही पास.
तब वो रिश्ता हमेशा बनाए ही रखना,
फिर ना मिलेगा कभी ऐसा विश्वास.
ये दुनिया विश्वास के डोर पे थमी है,
हर जगह तो यही विश्वास की कमी है.
उन्हे कभी खुद से जुदा नहीं करना,
खुद से भी ज्यादा जिनपर हो विश्वास.

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13 MAR AT 6:51

आंखो में नमी है,
सांसों में कमी है।
कांपते सूखे होंठ,
धड़कन थमी है।
झूठी मुस्कान है,
मन ये वीरान है।
हवाओं में जलन है,
हृदय स्पंदन कमी है।
रोने का मन है,
चेहरे पे शिकन है।
आंसू की धारा,
अन्दर ही जमी है।

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12 MAR AT 23:59

अधूरे रिश्ते के सम्मान के लिए हम झुक गए,
किसी के स्वाभिमान बचाने के लिए झुक गए।
यूं तो कभी शर्त पे हम रिश्ते नहीं बनाया करते,
आज खुद के ही उसूल के सामने हम झुक गए।

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12 MAR AT 7:57

घर से निकला हूं तो मंजिल भी मिल ही जाएगा,
सफर मे कोई साथ नहीं, कोई तो मिल ही जाएगा।
वैसे तो मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं,
लेकिन कोई साथ निभाने वाला मिल ही जाएगा।

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11 MAR AT 7:51

जीवन का चक्रव्यूह में फंसे हो तुम,
और कहते हो की स्वतंत्र हो तुम।
मोक्ष मार्ग की कामनाएं लिए हुए ,
माया के उलझनों में उलझे हो तुम।।
तुम्ही दूर हो और स्वयं के पास हो तुम,
मजबूर हो और स्वयं से निराश हो तुम।
जीने की प्रबल कामनाएं लिए हुए,
जिंदगी में क्षण–क्षण मर रहे हो तुम।

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11 MAR AT 0:55

क्या करूं मैं कहां जाऊं?
उलझन में खुद को कितना सताऊं?
कभी यहां तो कभी वहां,
रात को दिन से क्यूं जोडूं घटाऊँ?
अपनी आखों को उठाऊं,
या जमीं पे नज़र गराऊं ?
इधर देखूं तो उधर जाऊं,
अपनी कदमों को किधर बढ़ाऊं?
है उलझन में दुनियां? या मैं हूं?
उलझकर खुद को कैसे सुलझाऊं?


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8 MAR AT 7:52

तुम श्रद्धा हो
तुम विश्वाश हो
तुम श्रृष्टि हो
तुम आकाश हो
तुम्ही जीवनदायिनी
तुम्ही मोक्षदायिनी
तुम प्रणयिनी हो
जीवन की आस हो
तुम शक्ति हो
तुम मुक्ति हो
तुम्ही जीवन मंत्र हो
तुम्ही जीवन तंत्र हो
तुम स्वतंत्र हो
श्रृष्टि की परितंत्र हो
तुम्ही धरा हो
तुम्ही आकाश हो
तुम श्रद्धा हो
तुम्ही विश्वाश हो

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